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________________ 5 10 4/16 Nine brave sons of Yavanraja come into the arena owing to the defeat of five previous great warriors. Ravikīrti himself beheads all of them. दुवइ छिंदिवि छत्त-गत्त-धय-चामर-रहवर-तरल हयवरा ।। पाडिय पंचवीर समरंगणे णं पवणेण तरुवरा ।। छ।। जा पाडिय पंच वि पवर वीर उद्दाम सिंह संकास देह महिणाह जउण विग्गह पसूअ कूरंतरंग रिउ भीमरूव आरुहिवि ससारहिँ रहि तुरंत एयहिँ वेढिउ रविकित्ति केम वाइँ मेल्लतेहिँ तेहिँ वुत्तु भो पडिभड भंजण भाणुकित्ति समरंगणि पयडिय वीर वित्ति जइ माणिणि मणहर अस्थि सत्ति तो धाविय णावइ खय समीर ।। गज्जत णाइँ खयसमय-मेह ।। णं मारण मण जमराय दूअ ।। णं णवगह सइँ पच्चक्ख हूव ।। तिक्खण पहरण करयले धरंत ।। वणे पंचाणणु करि वरिहिँ जेम ।। सिरिसक्कवम्म णरणाह पुत्तु ।। इ अज्जु ण णिरसहुँ तुज्झ कित्ति ।। ता जणणहो पय पेक्खं ण वित्ति ।। ता लइ लहु मेल्लहि किण्णसत्ति ।। 4/16 दुर्धर पाँच यवन-भटों के पतन के बाद यवनराज के दुर्दान्त 9 पुत्र युद्ध में उतरते हैं । विकीर्ति अकेले ही उनके सिरों को विखण्डित कर डालता है द्विपदी - राजा रविकीर्ति ने समरांगण में उन पाँचों शत्रु- सुभटों को, उनके शरीर सहित छत्र, ध्वज, चामर, रथवर और चंचल हयवरों का छेदन कर उसी प्रकार गिरा दिया, जिस प्रकार कि पवन द्वारा विशाल वृक्ष-पंक्ति गिरा दी जाती है । जब शत्रुपक्ष के उन पाँचों वीरों को धराशायी कर दिया गया, तब उनके साथी सुभट भी समरांगण छोड़कर इतनी तीव्र गति से भागे, मानों प्रलयकालीन वायु ही प्रवाहित होने लगी हो । तब पृथिवीनाथ यवनराज के शरीर से उत्पन्न, उद्दाम एवं सिंह के समानदेह वाले, क्षयकालीन प्रचण्ड-वायु के समान गरजते हुए, क्रूर, चंचल, लम्बी देह एवं रौद्र रूप वाले तथा शत्रु पक्ष के संहार करने के लिये यमराज के दूत के समान मनवाले (यवनराज के) 9 पुत्र इस प्रकार उपस्थित हो गये, मानों साक्षात् नवग्रह ही जुट गये हों । तीक्ष्ण प्रहरणास्त्र हाथों में लेकर उन नौ यवन - पुत्रों ने सारथियों के साथ रथपर सवार होकर राजा रविकीर्ति को रणभूमि में किस प्रकार घेर लिया? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि वन में सिंह करिवरों द्वारा घेर लिया जाता है। की वर्षा करते हुए उन यवन पुत्रों ने नरनाथ शक्रवर्मा के पुत्र राजा रविकीर्ति से कहा—- प्रतिभटों के भंजक हे रविकीर्ति, यदि इस समरांगण में आज हम तुम्हारी कीर्ति का निरसन कर अपनी वीर-वृत्ति को प्रकट न कर दें, तो हम अपने पिता के चरणों के दर्शन एवं सेवा की वृत्ति से वंचित हो जायें । मानिनियों के मन को हरण करनेवाले हे शक्ति सम्पन्न, यदि तेरे पास शक्ति-शस्त्र हो, तो उसे लेकर तत्काल ही हम पर क्यों नहीं छोड़ता? उनकी चुनौती भरी ललकार सुनकर रविकीर्ति क्षुब्ध हो उठा। उसके रोंगटे खड़े हो पासणाहचरिउ :: 85
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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