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________________ 4/7 The earth is heavily gloomed with the storming dust arising from the violent fighting. वइ- अमरिस-वस बलेहँ धावंतेहिँ भासिय पोमिणीसरो। आयडिढय किवाण किरणोहहिंपच्छाइउ रिउ-दिणेसरो।। छ।। खुटुंत चलंत तुरंगमाहँ तिक्खण-खुर-पहरणि पीडियंगु मइलंतउ हय-मायंगजूह। अंतरि ठिउ सोहइ सुअण णाइ दुहयारउ णावइ सुहु खलासु रइरंग समाहय पिययमासु । णं णवकलत्तु णयणइँ रहंतु जलवारणे ठाइवि ठाइ चिंध हक्कारणत्थु णं सुरयणाहँ पेक्खहि देवहो कोऊहलाई जुज्झंतहँ दोहंवि साहणाहँ णित्तासिय भीम-भुअंगमाहँ ।। णियंतु स सारहिं रहु पयंगु ।। उच्छलिउ बहुलु धूली-समूहु।। मा जुज्झहु विणिवारंतु जाइ।। चंचलु णं जमजीहा विलासु।। अच्छोडिय णीवी बंधपासु।। तित्थयर जसु व जंतउ णहंतु ।। तं मुएवि जाए पुणु विउलरंध।। समरालोयणलालसमणाहँ ।। पच्चक्खइँ सुह-असुहहो फलाइँ।। णिरसिय रिउ णारि पसाहणाहँ।। 4/7 प्रचण्ड युद्ध-जनित धूलि ने पृथिवी को अंधकाराच्छन्न कर दियाद्विपदी-क्रोधावेश के कारण दोनों ओर के सैन्य-बलों ने जब (एक दूसरे पर आक्रमण करने के लिये) छलांगें मारी, तब म्यान के बाहर निकली हुई कृपाणों की किरणों की चमक से ऐसा प्रतीत होने लगा, मानों पद्मिनी सरोवर ने शत्रु रूपी सूरज को ही ढंक दिया हो। भयानक भुजंगमों को सन्त्रस्त करते हुए, भूमि को रौंदते-खुरचते चलते हुए घोड़ों के तीक्ष्ण खुरों के प्रहार से पीड़ितांग सारथी सूर्य - रथ के सारथी के समान प्रतीत हो रहे थे। घोड़े तथा मातंगों के समूहों की दौड़ के कारण उठी हुई, प्रचण्ड धूलि-समूह घोड़ों एवं मातंगों के यूथ को स्वयं मलिन कर रहा था। वह (धूलि-समूह) ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों, यह कह रहा हो कि अब तुम लोग युद्ध मत करो अथवा ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों इस प्रकार रोकता हुई कोई सज्जन ही बीच में मध्यस्थ हो गया हो, अथवा मानों दुखकारक दुष्टजन का ही वह (धूलि-समूह) मुख हो, अथवा चंचल यमराज की जीभ का वह क्रीड़ा-विलास ही हो अथवा, मानों वह समाहत प्रियतमा वाले विधुर का नीवी-बन्धन-मुक्त रतिरंग ही हो, अथवा मानों नेत्रों को छिपाता हुआ कोई नवकलत्र ही हो, अथवा, मानों तीर्थंकर का यश ही नभोमार्ग में उड़ रहा हो। ___ वह (धूलि-समूह) क्रमशः छत्रों (जल-वारणों) पर चढ़कर ध्वजाओं पर चढ़ बैठा। उन्हें भी छोड़कर वह मानों विपुल गुफा-गृहों में अथवा आकाश में चला गया, मानों युद्ध देखने की अभिलाषा वाले देवों को बुलाने तथा यह कहने के लिये ही जा रहा हो कि हे देवतागण, युद्ध में जझते हए पक्ष-विपक्ष के इन शत्र-सैनिकों की न शृंगार को मिटा देने वाले शुभ-अशुभ के फल को कौतूहल पूर्वक प्रत्यक्ष ही आकर देख लो। पासणाहचरिउ :: 75
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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