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________________ 10 5 जसु बलु बुज्झिवि परसणु पलाइ जसु पयभर चप्पिउ णायराउ सुरूअ-रयणु जोयंतएण हरिणा विरइउ लोयण सहासु तणु कंति पलोइवि ससि विलाइ ।। पावइ ण णिद्द सुहु धुणइ काउ ।। भत्तीए तित्ती अलहंतएण || जायउ सच्छरु सपरियणु सुदासु ।। घत्ता - सो सुरवरणाहु करिकरवाहु किं ण वियाणइ वप्प ? कर मउलिवि बेरि विरइय खेरि जसु णवंति हय दप्प ।। 37 | | 2/17 Child Pārśwa is taught various arts, sciences, philosophies and religions. War-tactices, and economic problems including social manners, customs and ceremonies etc.etc. दुवइ— कालक्खरहँ गणिय-गंधव्वइँ वीणा-वेणु सुंदरो। विविहइँ सरस सव्व वर कव्वइँ परिमोहिय पुरंदरो ।। छ । । गय- सिक्खा अस सिक्ख जोइस सुअवेय पुराण वेत्तिया ।। णाणाकरणभंग लिवि-लिहणइँ रस पउत्तिया । । अंजण-लेवणाइँ सरसत्थइँ णर-णारी पसाहणं । तल्लक्खणइँ अंगपरिमद्दणु रणमुहे वइरि-रोहणं । । सुरभवणाइँ लेवपरियम्मइँ असिवर णाय- बंधयं । भी नहीं दिखाता था (अर्थात् वह अनंग हो गया था), जिनके बल को देखकर (समझकर ) परसन (वायु) भी इधरउधर भागती-फिरती थी, जिनके शरीर की प्रभावक- कान्ति को देखकर ही मानों चन्द्रमा अपनी कान्ति को समेट कर विलीन हो जाता था, जिनके पद भार से दवा हुआ नागराज भी निद्रा का सुख प्राप्त नहीं कर पाता था और अपने शरीर को धुनता रहता था, जिनके रूप के सौन्दर्य को देखकर जब पूर्ण तृप्ति नहीं मिली तब इन्द्र ने उसे देखने के लिये अपने सहस्र-नेत्र बना लिये और वह इन्द्र अपनी अप्सराओं तथा परिजनों सहित उनका सदा-सदा के लिये भक्त दास बन गया । घत्ता— क्या वह सुरवरनाथ (इन्द्र) ऐरावत हाथी के शुण्डादण्ड के समान बाहुओं वाले उन पार्श्व (के बल-वीर्य-पराक्रम) को नहीं जान पाया था, जो कि बाप रे बाप, उनसे विरोध रखने वाले खार खाए शत्रुजनों के द्वारा भी नमस्कृत रहते थे। (37) 2/17 बालक पार्श्व की विविध कलाओं तथा ज्ञान-विज्ञान के प्रशिक्षण की सूची बालक - पार्श्व निम्नलिखित कलाओं में पारंगत थे • कालाक्षर, गणित, गन्धर्व - विद्या को भी मोहितकर देने वाली सरस बीणा (-वादन) एवं वेणु (बांसुरी)- वादन तथा नव रस युक्त विविध उच्चकोटि की काव्य-रचना तथा गजशिक्षा, अश्व- शिक्षा, ज्योतिष एवं श्रुत (वेद), पुराण तथा वृत्तियों के वे ज्ञाता थे। नाना चेष्टाएँ तथा भंगिमाएँ करना, लिपि-लेखन, रस-प्रवृत्ति, अंजन- लेपन, काम-शास्त्र कला, नर-नारी का प्रसा ान (सजावट), नर-नारी के लक्षणों का ( सामुद्रिक) ज्ञान, अंग-परिमर्दन ज्ञान, रण-मुख में बैरी को रोकना, सुर - विमान, भवनादि का लेप (चित्र) - कर्म, असिवर (खड्ग ) - चालन, नागपाश बन्धन, अग्नि-स्तम्भन, जल-स्तम्भन, मुद्रा-स्तम्भन, पासणाहचरिउ :: 43
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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