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________________ खेयरोरगामरोहु चालिऊण चामरोहु।। कोवि कुंकुमेण पाय लिंपए सरोय-राय।। कोवि थोत्तु उच्चरेइ कोवि माणसे सरेइ।। कोवि वायए सुवज्जु कोवि गायए मणोज्जु ।। कोवि दंडपाणि जाउ कोवि आलवेइ राउ।। कोवि फुल्लु दामु देइ सत्ति पुण्णु पुंजु लेइ।। णच्चए रसालु कोवि सुस्सरं पढेवि कोवि।। कोवि देइ (तो) रणाइँ देव चित्त-चोरणाइँ।। जं जं पमाणु देव-देव कोवि दसए सुसेव।। कोवि हत्थ जोडिऊण मोह भाउ तोडिऊण।। मत्थयं सुणाविऊण भासए सुभाविऊण।। फेडिऊण सग्ग-सोक्खु देव-देव देहि मोक्खु।। पत्ता- इच्छिय सिवसिवासु णाण णिवासु परिपासिय भव पासु। इय मुणिवि मणेण सइरमणेण णामु धरेउ पासु ।। 30।। 2/10 Hymns to the Jina (-Parswa) by the Gods (Suras). पुणु थुणिउ परमप्परु पवर पुरिसु कय सयल भुअणयल मणुअ हरिसु।। जय सरय सिसिरयर सरिस चरण जय फणि-सुर-णर-खयर थुय चरण।। लगे। कोई देव जिनेन्द्र के रक्त वर्ण वाले कमल के समान रक्ताभ चरणों में कुंकुंम से लेप करने लगे। कोई-कोई तो स्तुति का उच्चारण कर रहे थे और कोई-कोई अपने मन में ही उनका स्मरण कर रहे थे। कोई-कोई अच्छे-अच्छे बाजे बजाने लगे। कोई मनोज्ञ गीत गाने लगे। कोई-कोई अपने हाथों में दण्ड धारण करने लगे। कोई-कोई राग आलापने लगे। कोई-कोई फूलमाल चढ़ाने लगे और अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार पुण्य कमाने लगे। कोई-कोई रस पूर्ण नृत्य करने लगे, तो कोई-कोई सस्वर मन्त्र-पाठ पढ़ने लगे। कोई ऐसे-ऐसे रस पूर्ण नृत्य करने लगे, तो कोई-कोई सस्वर मन्त्र-पाठ पढ़ने लगे। कोई ऐसे-ऐसे तोरण रचाने लगे, जो देवों के चित्त को चुराने वाले थे। जिस देव के लिये जो प्रमाण (योग्य) था, वही अपनी-अपनी सुन्दर सेवा कर दिखाते थे। कोई हाथ जोड़कर, मोहभाव को तोड़कर, मस्तक को अच्छी तरह नवाकर सुन्दर-भाषा में भावना कर रहे थे कि हे देव, स्वर्ग के सुखों से हटा कर हमें मोक्ष-सुख प्रदान करो। घत्ता- शची-रमण (इन्द्र) ने अपने मन में विचार किया कि ये जिनेन्द्र, शिव-सुख को चाहने वाले, ज्ञान के निवास वाले और भव-पाश (मोह) को शीघ्र ही तोड़ने वाले हैं, अतः उसने उस बालक का नाम पार्श्व रखा। (30) 2/10 ... देवों द्वारा स्तवनपुनः (उस इन्द्र ने) परमात्मरूप उत्तम पुरुष, सकलभुवन के मनुष्यों को हर्षित करने वाले प्रभु बाल-जिनेन्द्र की इस प्रकार स्तुति की शरद्कालीन चन्द्र के समान अति निर्मल चारित्र वाले हे देव, आपकी जय हो। नाग, सुर, नर, खेचरों द्वारा पूजित पासणाहचरिउ :: 35
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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