________________
प्रस्तावना
तीर्थंकर पार्व : इतिहास के प्रांगण में __ श्रमण-संस्कृति के विकास में तीर्थंकर पार्श्व का स्थान विशेष ऐतिहासिक महत्व का रहा है। 19वीं सदी के अन्तिम चरण तक भ्रमवश कुछ विद्वान् भगवान् महावीर को एक पौराणिक महापुरुष अथवा जैनधर्म का संस्थापक तथा उनके पूर्ववर्ती तेईस तीर्थंकरों को केवल Mysticle या Mythological मानते रहे, किन्तु हड़प्पा' के उत्खनन में उपलब्ध कुछ सीलों में वृषभांकित जटा-जूटाधारी नग्न-मूर्तियों तथा विश्व के प्राचीनतम साहित्य-ऋग्वेद में उल्लिखित ऋषभ एवं अन्य जिनों, श्रीमद्भागवत में वर्णित ऋषभचरित और अन्य कुछ शिलालेख एवं प्राच्यसाहित्य के आधारों पर डॉ. हर्मन याकोवी', डॉ. आर.पी. चन्दा., डॉ. संकलिया, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, डॉ. प्राणनाथ, डॉ. एस राधाकृष्णन् , डॉ. बी सी लाहा', डॉ. के.पी. जायसवाल, डॉ. कामताप्रसाद एवं आचार्य विद्यानन्द प्रमृति प्राच्य एवं पाश्चात्य प्राच्य-विद्याविदों की सघन खोजों से उनके उक्त भ्रम दूर हो सके। प्रतीत होता है कि सुदूर अतीत में लेखनोपकरण सामग्री के सामान्यीकरण होने के पूर्व भक्तजनों को उनकी कण्ठ-परम्परा से प्राप्त जानकारी भले ही रही, उनकी स्तुतियाँ भी की जाती रही थी किन्तु ईस्वी सन् के प्रारम्भ तक उनका या अन्य शलाका-महापुरुषों का व्यवस्थित सर्वांगीण लिखित जीवनचरित उपलब्ध न था। इसीलिए आचार्य विमलसूरि (ईस्वी की दूसरी-तीसरी सदी के लगभग) को भी अपने प्राकृत-पउमचरियं के प्रणयन के समय स्पष्ट रूप से लिखना पड़ा था :
णामावलिय णिबद्ध आयरियपरंपरागयं सव्वं ।
वोच्छामि पउमचरियं अहाणपव्विं समासेण।। 1/8 अर्थात् आचार्य-परम्परा से प्राप्त नामावली के आधार पर यथानुपूर्वी संक्षेप में मैं इस समस्त पउमचरियपद्मचरित (रामायण) की रचना कर रहा हूँ।
नामावली की यह जटिल समस्या केवल उक्त पउमचरियं के लेखनकाल तक ही सीमित न थी बल्कि समस्त त्रिषष्ठिशलाकामहापुरुषों एवं इतर महापुरुषों सम्बन्धी चरित-साहित्य के लेखन के लिए भी थी। महापुरुषों की परम्परा-प्राप्त संक्षिप्त नामावालियाँ अथवा कुछ महापुरुषों की अति संक्षिप्त घटनाएँ तो प्राचीन जैनागम-साहित्य में उपलब्ध थीं किन्तु किसी भी महापुरुष का व्यवस्थित, विकसित, विस्तृत एवं आलंकारिक शैली में लिखित जीवनचरित उपलब्ध न था।
1 दे. विश्वधर्म की रूपरेखा-लेखक क्षुल्लक पार्श्वकीर्ति वर्णी (दिल्ली) 1958 पृ. 27-28 2. ऋग्वेद 8/8/24, 2/33/15, 10/15/1.3 3. श्रीमद्भागवत - पंचम स्कन्ध 3/20 4. Indian Antiquary Vol. IX, P. 163 5. Modern Review, August 1932 6. Indian Philosophy Vol. I, P. 287 7. Historical Gleanings, P. 78 8. कलिंगचक्रवर्ती महाराज खारवेल के शिलालेख का विवरण (ना. प्र. सभा काशी) पत्रिका भाग 8 में प्रकाशित लेख
प्रस्तावना :: 9