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२६. श्री महा पच्चखाण पयन्ना सूत्र
२१०) अंत समय तक भी जो अपने पापो को गुरु के पास लज्जा - गारवबहुश्रुतत्व के कारण पापो को आलोचकर प्रायश्चित लेता नही है, वह श्रुत समृद्ध होते हुए भी आराधक बनता नही है ।
२११) जिसने पूर्व समय में अपनी पांचो इन्द्रीयो का निग्रह नही किया है, परिषदो को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं किये है, वो ही आत्मा अपने अंत समय में मृत्यु से डरता है । भयभीत बनता है ।
२१२) जिससे आत्मा को वैराग्य हो, वह वह सब कार्य आदर के साथ करने ।
२१३) अंत समयमें जिस को वेदना (पीडा ) उत्पन्न हुई हो वह ऐसा चिंतन करे की इससे अनंत गुणी वेदना मैने नरक में अनंतीबार मजबुरी से सहन की है, उसके सामने यह कुछ भी नहीं, अब मुझे समता से सहन करनी है, ऐसा कुछ चिंतन करके कोई कुछ आलंबन लेकर मुनि-वेदना (पिडा ) के दुःख को सहन करे ।
२७. भत्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र ( पयन्ना)
२९४) घृती - बल रहित, अकाल मृत्यु (सोपक्रमी जीव ) को प्राप्त करनेवाले वर्तमानकालीक साधु को निरुपसर्ग मरण ही योग्य है । २१५) कैसे अनशन कराया - कीया जाए उसकी विधि इस आगम में बताई गई है ।