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उत्तर : क्योंकि देवगति में अविरती-चारित्र रुप पच्चखाण का
अभाव है। २००) केवल ज्ञानी, केवली समुद्धात करने से पहेले ‘आवर्जीकरण'
करते है, आवर्जीकरण यानि शुभ मन-वचन-काया रुप व्यापार के उपयोग पूर्वक आत्माको मोक्ष सन्मुख जोडने की क्रिया । कीतने ही केवलज्ञानी केवली समुद्धात करे, और कितने ही नहीं
भी करे, परंतु सब केवलज्ञानी आवर्जीकरण अवश्य करते है। २०१) केवली समुद्धात करने से पहेले केवलज्ञानी खुद के पास रहे हुए
आसन-संथारा (शय्या) पाट आदि वापीस देवे (जिसके हो उसे) फीर योग का निरोध-शैलेशीकरण आदि करते है।
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१६-१७ सूर्य-चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र २०२) शिष्य सम्यक् प्रकार से शास्त्र पढा हुआ ज्ञानी रहे तो भी गुरु की
आज्ञा मिलने पर ही तत्व का उपदेश अन्यलोगो को देना, अन्यथा नहीं।
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१८. श्री जंबूद्विप प्रज्ञप्ति सूत्र
२०३) इस सूत्र में भी शाश्वती प्रतिमा के पीछे छत्रधारी प्रतिमा का
उल्लेख आया है।