________________
७. अगीतार्थ भी सुन लेवे ऐसे जोर जोर से बोलकर आलोचना
करें।
८. एक ही दोष की आलोचना अनेक साधुओ के पास करे। ९. अगीतार्थ के पास जाकर आलोचना करे । १०. जो गुरु उनके जैसे ही दोष का सेवन करनेवाले हो, उनके
पास आलोचना करे, ताकी समान आचरणवाले गुरु को
सुखपूर्वक अपराध कह सके। १४२) प्रश्न : आलोचना (प्रायश्चित) देनेवाले आचार्य में गुरु में कौन
से गुण होने चाहिए ? उत्तर : (१) आचारवान ज्ञानादि पंचाचार से युक्त सुंदर संयम पालनेवाले। २) आधारवान - आलोचना लेने आए हुए के अपराध को
बराबर सुनकर अवधारनेवाले आए हुए . ३) व्यवहारवान - आगम, श्रुत आदि पांच व्यवहार युक्त
व्यवहार कुशल। ४) अपव्रीडक - शरम से अतिचार छूपानेवाले को विविध
वचनो से शरम दूर कराके उसके सही आलोचना करानेवाले ५) प्रकुर्वक : आलोचित अपराध में प्रायश्चित दान से विशुद्धि
कराने में समर्थ।
१४३) अभ्यंतर रुप से कार्मण शरीर को प्राय:तपाने से सम्यग् दृष्टि के
द्वारा ही मात्र स्वीकृत है उसे अभ्यंतर तप कहते है।