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________________ प्रथम पर आदिनाथ-चरित्र न्तर बख तर को पहनने वाले, छत्तोस कार के तीक्ष्ण शत्रों को धारण करने वाले और स्वामी की रक्षा करने में अतुर---ये आपके आत्मरक्षक देवता हैं। आप के नगः की रक्षा करने वाले यं लोकपाल देवता हैं। आपकी सेना में ये रणकला-कुशल धुरन्धर सनाधिपति हैं। ये पुरवासी और देशवासी प्रकीर्णक देवता आप की प्रजा रूप हैं। थे सब भी आप की निर्माल्य रूप आज्ञा को मस्तक पर धारण करेंगे। ये आभियोग्य देवता आप की दासों की तरह सेवा करने वाले हैं और ये किल्विषक देवता सब प्रकार के मैले काम करने वाले हैं। सुन्दर रमणियों से रमणीक आँगनवाले, मन को प्रसन्न करने वाले और रत्नों से जड़े हुए ये आपके महल हैं। सुवर्ण-कमल की खान जैसी रत्नमय ये वाटिकायें हैं। रत्न और सुवर्ण की चोटी वाले ये तुम्हारे क्रीडा-पर्वत हैं । हर्ष कारी और स्वच्छ जलवाली ये क्रीड़ा-नदियाँ है। नित्य फलफूल देवेवाले ये क्रीड़ा-उद्यान हैं। अपनो कान्ति से दिशाओं के मुख को प्रकाशित करनेवाला सूर्यमण्डल के समान, रत्न और मणियों से बना हुआ यह आप का सभामण्डप है। चमर, दर्पण और पंखेवाली ये वाराङ्गनायें आप की सेवा में ही महोत्सव मानने वाली हैं। चारों प्रकार के बाजे बजाने में दक्ष ये गन्धर्व आप के सामने गाना करने को सजे हुए खड़े हैं।' प्रतिहारी के ऐसा कहने के बाद, ललि. तांग देव को, अवधिज्ञान से जिस तरह पिछले दिन की बात याद आजाती है उस तरह, पूर्व जन्म की बात याद आगई । 'अहो !
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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