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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पव अजगर हुआ। जो भण्डार में जाता, उसे ही वह अग्नि के समान सर्वभक्षी और दुरात्मा अजगर निगल जाता । एक दिन उस अजगरने मणिमाली को भण्डार में घुसते देखा। पूर्वजन्म की बात याद रहने से, उसने उसे "यह मेरा पुत्र हैं” इस तरह पहचान लिया। मूर्तिमान् स्नेह की तरह अजगर की शान्त मूर्ति को देख कर, मणिमालीने अपने मन में समझ लिया कि, यह मेरा कोई पूर्वजन्म का बन्धु है । फिर ज्ञानी मुनि से यह जान कर कि, यह मेरा अपना पिता है, उसने उसे जैनधर्म सुनाया। अजगरने भी अहंत धर्मको जानकर संवेगभाव धारण किया; शेषमें शुभध्यानपरायण होकर देह त्याग की और देवत्व लाभ किया। उस देवताने, पुत्र-प्रम के लिए, स्वर्गसे आकर, एक दिव्य मोतियों का हार मणिमाली को दिया, जो आज तक आप के हृदय पर मौजूद है। आप हरिश्चन्द्र के वंश में पैदा हुए हैं और मैं सुबुद्धि के वंश में जन्मा हूँ । इसलिये, क्रम से आये हुए इस प्रभाव से, आप धर्म में मन लगाइये-धर्माचरण कीजिये । अब मैंने आपको, बिना अवसर, जो धर्म करने की सलाह दी है, उस का कारण भी सुनिये। आज नन्दन बन में, मैंने दो चारण मुनि देखे । जगत् के प्रकाश को उत्पन्न करने वाले और महामोह रूपी अन्धकार को नाश करने वाले वे दोनों मुनि एकत्र ऐसे मालूम होते थे, गोया चन्द्र-सूर्य ही मिले हों। अपूर्व ज्ञान से शोभायमान दोनों महात्मा धर्मदेशना देते थे। उस समय मैंने उनसे आप की आयुष्यका प्रमाण पूछा । उन्होंने आप का आयुष्य एक मास का ही बाकी बताया।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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