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आज हम पाठकोंके सामने इस महोपकारी ग्रन्थका हिन्दी अनुवाद उपस्थित करते हुए आशा करते हैं, कि हमारा यह उद्योग उनकी सहायता, - उदारता और कृपाका भाजन हो सकेगा । अबतक हिन्दी भाषा में इस ग्रन्थका कोई अनुवाद नहीं था, इसलिये लोग बड़े ही लालायित थे । इस कार्य में हमें बहुत सा श्रम और व्यय उठाना पड़ा है। आशा है, कि इस ग्रन्थ को अपनाकर हमें इसके अन्यान्य पर्वो को प्रकाशित करनेके लिये उत्साहित करेंगे ।
इस पुस्तक में दृष्टि दोष से अनेक अशुद्धियों एवम् दोषोंका रह जाना संभव है, अतएव मैं आप लोगों से इसके लिये क्षमायाचना पूर्वक इसकी त्रुटियोंको सुधार कर पढ़ने के लिये प्रार्थना करता हूँ ।
शेष में हम अपनी परम माननीया साद्वी शिरोमणि सोहनश्रीजी तथा विदुषी विनयश्रीजी के पूर्ण उपकृत हैं, जिन्होंने इस पुस्तक के निमित्त पहले से ग्राहक बनाने की कृपा की है । अस्तु ।
सा० २५ जनवरी १९२४ "नरसिंह प्रेस"
२०१ हरियम रोड,
कलकत्ता ।
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आपका
काशीनाथ जैन ।