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________________ आदिनाथ-चरित्र - ६४ . प्रथम पर्व उस मांस को गिद्ध पक्षी लेकर उड़ गया-उभयभ्रष्ट होकर अपने आत्मा को ठगते हैं या पाखण्डियों की खोटी शिक्षा को सुनकर और नरक से डरकर, मोहाधीन प्राणी व्रत प्रभृति से अपने शरीर को दण्ड देते हैं । और लावक पक्षी पृथ्वी पर गिरने कीशंका से जिस तरह एक पाँव से नाचता है; उसी तरह मनुष्य नरकपात की शंका से तप करता है।" स्वयं बुद्ध बोला--'अगर वस्तु सत्य न हो, तो इससे अपने कामके करनेवाला अपने कामका कर्ता किस तरह हो सकता है? यदि माया है, तोसुपने में देखा हुआ हाथी कामक्यों नहीं करता ? अगर तुम पदार्थों के कार्यकारण-भाव को सच नहीं मानते, तो गिरने वाले वज़ से क्यों डरते हो? अगर यही बात है, तो तुम और मैं वाच्य और वाचक कुछ भी नहीं हैं। इस दशा में, व्यवहार को करने वाली इष्ट की प्रतिपत्ति भी किस तरह हो सकती है ? हे देव ! इन वितण्डवाद में पण्डित, सुपरिणाम से पराङ्मुख, और विषयाभिलाषी लोगों से आप ठगे गये हैं; इसलिये विवेक का अवलम्बन करके विषयों को त्यागिये एवं इस लोक और परलोक के सुख के लिऐ धर्म का आश्रय लीजिये। ___इस तरह मन्त्रियों के अलग-अलग भाषण सुनकर, प्रसाद से सुन्दर मुंहवाले राजा ने कहा-“हे महाबुद्धि स्वयं बुद्ध !. तुमने बहुत अच्छी बातें कहीं। तुमने धर्म ग्रहण करने की सलाह दी है, वह युक्ति-युक्त और उचित है। हम भी धर्म
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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