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________________ भादिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व है और उस फल के भोगने के लिए, कर्म करनेवाले को, मरकर, फिर जन्म लेना पड़ता है। इस जगत् में, ये सब आँखों से देखने पर भी, जो मनुष्य परलोक और धर्म-अधर्म को नहीं मानते, उन बुद्धिमानों का भी भला हो! अब और अधिक क्या कहूँ ? हे राजन् ! आपको असत् वाणी के समान दुःख देनेवाले अधर्म का त्याग करना चाहिये और सत् वाणी के समान सुख के अद्वितीय कारण-रूप धर्म को ग्रहण करना चाहिये।" क्षणिक मत का नैराश्य । ये बातें सुनकर शतमति नामक मंत्री बोला–प्रतिक्षण भंगुर पदार्थ विषय के ज्ञान के सिवाय दूसरी ऐसी कोई आत्मा नहीं है ; और वस्तुओं में जो स्थिरता की बुद्धि है, उसका मूल कारण वासना है; इसलिये पहले और दूसरे क्षणों का वासनारूप एकत्व वास्तविक है-क्षणों का एकत्व वास्तविक नहीं।" - स्वयंबुद्ध ने कहा-'कोई भी वस्तु अन्वय-परम्परा--- रहित नहीं है। जिस तरह जल और घास वगैरः की, गायों में दूध के लिए. कल्पना की जाती है, उसी तरह आकाश-कुसुम समान और कछुए के रोम के समान, इस लोक में, कोई भी पदार्थ अन्वय-रहित नहीं है। इसलिए क्षणभंगुरता की बुद्धि व्यर्थ है। यदि वस्तु क्षणभंगुर है, तो सन्तान परम्परा भी क्षण. भंगुर-क्षण में नाश होनेवाली-क्यों नहीं कहलाती ? अगर सन्तान की नित्यता को मानते हैं, तो समस्त पदार्थ क्षणिक
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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