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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
न भोगें ऐसा किस तरह कह सकते हैं ? जो इस भव-सम्बन्धी भोगों को त्याग कर, परलोकके लिये चेष्टा करते हैं, वे, हथेली में रक्खे हुए चाटने योग्य लेह्य पदार्थ को छोड़कर, कोहनी चाटनेवाले कसा काम करते हैं। धर्म से परलोक में फल की प्राप्ति होती है, ऐसी बात जो कही जाती है, वह असङ्गत है; क्योंकि परलोकी जनों का अभाव है, इसलिये परलोक भी नहीं है । जिस तरह गुड़, पिष्ट और जल वगैरः पदार्थों से मद-शक्ति उत्पन्न होती है; उसी तरह पृथ्वी, जल, तेज और वायु से चेतना - शक्ति उत्पन्न होती है । शरीर से जुदा कोई शरीरधारी प्राणी नहीं है, जो इस शरीर को त्याग कर परलोक में जाय, इसलिये विषयसुख को बेखटके भोगना चाहिये, विषयों के भोगने में निःशङ्क रहना चाहिये और अपने आत्मा को ठगना नहीं चाहिए; क्योंकि स्वार्थ भ्रंश करना मूर्खता है । धर्म और अधर्म- - पुण्य प पाप की तो शङ्का ही नहीं करनी चाहिए; क्योंकि सुखादिक मेंवे विघ्न-बाधा उपस्थित करने वाले हैं; और फिर, गधे के सींगों की तरह वे कोई चीज़ हैं भी नहीं । ज्ञान, विलेपन, पुष्प और वस्त्राभूपण प्रभृति से जिस पत्थर को पूजते हैं, उसने क्या पुण्य किया है ? और जिस पत्थर पर बैठकर लोग मल-मूत्र त्याग करते हैं, उसने क्या पाप किया है ? अगर प्राणी कर्म से उत्पन्न होते और मरते हैं; तो पानी के बुलबुले किस कर्म से उत्पन्न और नष्ट होते हैं ? जबतक चेतन अपनी इच्छा से चेष्टा करता है, तब तक वह चेतन कहलाता है और जब वह चेतन नष्ट हो जाता है, तब उसका