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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र तप-महिमा। जो कर्म को तपाता है, उसे 'तप कहते हैं। उसके 'बाह्य और अभ्यन्तर' ये दो भेद हैं। अनशन, ऊनोदरी, वृत्ति संक्षेप, रसत्याग, कायक्कैश और संलीनता-ये छः प्रकार के 'बाह्य तप' हैं और प्रायश्चित्त, वैयावृत्य, स्वाध्याय, विनय, कायोत्सर्ग और शुभ ध्यान,—ये छ: प्रकार के 'अभ्यन्तर तप' हैं। . देशनाकी समाप्ति । ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय को धारण करने वाले में अद्वितीय भक्ति रखना, उसका कार्य करना, शुभ की ही चिन्ता करना और संसार की निन्दा करना-इन चार को 'भावना' कहते हैं। यह चार प्रकार का धर्म निस्सीम फल-मोक्ष-फलके प्राप्त करने में साधन-रूप है ; इसवास्ते संसार-भ्रमण से डरे हुए मनुष्यों को, सावधान होकर, इसकी साधना करनी चाहिए।" पुनः मार्ग-गमन। वसन्तपुर पहुँचना । देह-त्याग। इस प्रकार देशना सुनकर धन-सेठ बोला-'स्वामिन् ! यह धर्म बहुत दिनों के बाद आज मेरे सुनने में आया है, इसलिए इतने दिनों तक मैं अपने कर्मों से ठगाता रहा,' वह इस तरह कहकर,
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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