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गुणोंका अवलम्बन करनेसे उनका जीवन आदश बन गया, यही सब बातें बतलाकर मनुष्यके चरित्रकी उन्नति करनेका प्रयास किया गया। इसी चेष्टाके परिणाम स्वरूप कथा-शास्त्र और इतिहासोंको सृष्टि हुई। इन शास्त्रीय कथाओं में सभी तरहके गहन विषयोंको सरलताके साथ सर्वसाधारणमें प्रचलित करनेकी चेष्टा की गयी। संस्कृत-साहित्यमें ऐसे अनेक गद्य-पद्यमय ग्रन्थ हैं। प्राकृतमें भी बहुतसे ऐसे ग्रन्थ बने। इस कथानुयोग द्वारा मनुष्यसमाजका बड़ा उपकार हुआ है और आगे भी होता रहेगा। - कलिकाल-सवेश श्री हेमचन्द्राचार्य जैन-धर्मके एक बड़े भारी आचार्य हो गये हैं । उन्होंने ही कुमारपाल राजाको धर्मोपदेश देकर जैनी बनाया था और समस्त देशमें जैन-धर्मकी विजयपताका फह. रायोथी। उनके नामसे जैन-धर्मावलम्बी-मात्र भली भाँति परिचित है। इन्हीं आचार्य महोदयने राजा कुमारपालके अनुरोधसे 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' नामका एक बड़ा ही उत्तम ग्रन्थ, लोककल्याणके निमित्त, लिख डाला। जिस प्रन्थके रचयिता कलिकाल सर्वशकी पदवी धारण करनेवाले श्री हेमचन्द्राचार्य हों
और जो राजा कुमारपाल जैसे श्रेष्ठ आहेत राजाके बोधके निमित्त लिखा गया हो, उसकी उत्तमता, काव्य-चमत्कार और विषयको उपयोगिताके सम्बन्धमें भला किसे सन्देह हो सकता है ?
आचार्य हेमचन्द्रने इस प्रन्थमें इतने चरित्रोंका इस खुबीसे समावेश किया है, उनके लिखनेका ढंग ऐसा रोचक और प्रभावोत्पादक है, कि पाठकों और श्रोताओंको उनकी बद्धिकी विशा