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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र ....................... था। मानों माणिक्य जड़ी हुई मुद्रिका पहने हुए हो। कहीं तो पल्लवित होता हुआ, कहीं कवच धारण किये, कहीं रोमाञ्चित बना हुआ और कहीं किरणोंसे लिप्त मालूम पड़ता था। गोशीर्ष-चन्दन के रसके तिलकसे वह जगह-जगह चिह्नित किया गया था। उसकी सन्धियाँ इस कारीगरीसे मिलायी गयी थीं, कि सारा मन्दिर एक ही पत्थरका बना हुआ मालूम पड़ता था। उस चैत्यके नितम्बभागपर अपनी विचित्र चेष्टासे बड़ी मनोहर दीखती हुई माणिककी पुतलियाँ बैठायी हुई थीं। इससे वह ऐसा मालूम होता था, मानों अप्सराओंसे अधिष्ठित मेरुपर्वत हो। उससे द्वारके दोनों ओर चन्दनसे लेपे हुए दो कुम्भ रखे हुए थे। उनसे वह ऐसा मालूम होता था, मानों द्वार-स्थलपर दो पुण्डरीक-कमल उग आये हों और उस की शोभाको बढ़ा रहे हों। धूपित करके तिरछी बाँधी हुई लटकती मालाओंसे वह रमणीय मालूम होता था। पंचरंगे फूलोंसे उसके तलभागपर मण्डल भरे हुए थे। जैसे यमुना-नदीसे कलिन्दपर्वत सदा प्लावित होता रहता है, वैसेही कपूर, अगर और कस्तूरीसे बने हुए धूपके धूएँ से वह भी सदैव व्याप्त रहता था। आगे-पीछे और दाहिने-बायें सुन्दर चैत्यवृक्ष और माणिककी पीठिकाएँ बनी हुई थीं। इनसे वह ऐसा मालूम होता था, मानों गहने पहने हुए हों और अपनी पवित्रताके कारण वह ऐसा शोभायमान दीखता था, मानो अष्टापदपर्वतके शिखरपर मस्तकके मुकुटका माणिक्य-भूषण हो तथा नन्दीश्वरादि चैत्योंकी स्पर्धा कर रहा हो।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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