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________________ प्रथम पर्व . ५३७ आदिनाथ-चरित्र करनेवाली बड़ीसी मणि-पीठिका प्रत्येक दिशामें बनायी गयी । उन मणि-पीठिकाओंके ऊपर चैत्य-स्तुपके सम्मुख पाँच सौ धनुषों के प्रमाणवाली, रत्ननिर्मित अङ्गवाली, ऋषभानन,वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण- इन चार नामोंवाली, पर्यङ्कासनपर बैठी हुई, मनोहर नेत्ररूपी कुमुदोंके लिये चन्द्रिकाके समान, नन्दीश्वर-महाद्वीपके चैत्यके अन्दर जैसी हैं वैसी, शाश्वत जिन प्रतिमाएँ बनवा कर स्थापित करवायीं। प्रत्येक चैत्य-स्तूपके आगे अमूल्य माणिक्यमय विशाल एवं सुन्दर पीठिकाएँ तैयार करवायीं । उस प्रत्येक पीठिकाके ऊपर एक-एक चैत्यवृक्ष बनवाया और हरएक चैत्यवृक्षके पास एक-एक मणि-पीठिका और बनवायी, जिसके ऊपर एक-एक इन्द्रध्वज भी रखा गया । वे इन्द्रध्वज ऐसे मालूम होते थे, मानों धर्मने प्रत्येक दिशामें अपना जयस्तम्भ स्थापित कर रखा हो। प्रत्येक इन्द्रध्वजके आगे तीन सीढ़ियों और तोरणोंवाली नन्दा नामकी पुष्करिणी बनवायी गयी। स्वच्छ और शीतल जलसे भरी हुई तथा विचित्र कमलोंसे सोहती हुई वे पुष्करिणियाँ, दधि-मुख-पर्वतकी आधार-भूता पुष्करिणीकी भाँति मनोहर मालूम होती थीं। महाराजने उस सिंहनिषद्या नामक महाचैत्यके मध्यभागमें एक बड़ीसी मणि-पीठिका बनवायो और समवसरणकी तरह उसके मध्यमें एक विचित्र रत्नमय देवच्छन्द बनवाया । उसके ऊपर उन्होंने विविध वर्णोके वस्त्रोंके चँदवे तनवाये, जो अकालमें ही सन्ध्या समयके बादलोंकी शोभा दिखलाते थे। उन चंदवों
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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