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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व हैं, सब चक्रवर्तियोंमें मेरे पिता ही पहले चक्रवर्ती हुए; सब वासुदेवोंमें मैं ही पहला वासुदेव हूँगा। अहा ! मेरा कुल भी कैसा श्रेष्ट है। जैसे हाथियोंमें ऐरावत श्रेष्ठ है, वेसेही तीनों लोकके सब कुलोंसे मेरा कुल श्रेष्ठ है। जैसे सब ग्रहोंमें सूर्य बड़ा है, सब ताराओंसे चन्द्रमा बड़ा है, वैसेही सब कुलोंसे मेरा कुल गौरवमें बढ़ा हुआ है।" जैसे मकड़ी आपही अपने जालमें फंस जाती है, वैसेही मरिचिने भी इस प्रकार कुलाभिमान करके नीच गोत्र बांधा। पुण्डरीक आदि गणधरोंसे घिरे हुए ऋषभस्वामी विहारके बहाने पृथ्वीको पवित्र करते हुए वहाँसे चल पड़े। कोशलदेशके लोगों पर पुत्रकी तरह कृपा करके उन्हें धर्ममें कुशल बनाते हुए, बड़े पुराने मुलाकातियों की तरह मगध देशवालोंको तपमें प्रवीण करते हुए कमलकी कलियोंको जैसे सूर्य खिला देता है, वैसेही काशीके लोगोंको प्रबोध देते हुए, समुद्रको आनन्द देनेवाले चन्द्रमाकी भाँति दशार्ण देशको आनन्दित करते हुए, मूर्छा पाये हुएको होशमें लानेके समान चेदी देशको सचेत (ज्ञानवान्) बनाते हुए बड़े-बड़े बैलों की तरह मालव देशवालोंसे धर्म-धुराको वहन कराते हुए, देवताओंकी तरह गुर्जर-देशको पाप-रहित शुद्ध आशय वाला बनाते हुए और वैद्यकी तरह सौराष्ट्र देशवासियोंको पटु ( सावधान ) बनाते हुए महात्मा ऋषभदेवजी शत्रुञ्जय पर्वत पर आ पहुंचे। अपने अनेक रौप्यमय शिखरोंके कारण वह पर्वत ऐसा
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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