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________________ आदिनाथ चरित्र ५१८ प्रथम पर्व (बलभद्र) नामके नवें बलदेव बारह सौ वर्षकी आयुवाले होंगे। इन नवोंमेंसे आठ बलदेव मोक्षको प्राप्त होंगे और नवें राम(बलभद्र) ब्रह्म नामक पाँचवें देवलोकमें जायेंगे और वहाँसे आनेवाली उत्सर्पिणीमें इसी भरतक्षेत्रमें अवतार लेकर कृष्ण नामक प्रभुके तीर्थमें सिद्ध हो जायगे । अश्वग्रोव, तारक, मेरक, मधु, निष्कुम्भ, बलि, प्रहलाद, रावण और मगधेश्वर ( जरासन्ध ) ये नौ प्रति वासुदेव* होंगे। वे चक्र चलानेवाले, चक्रधारी होंगे, अतएव वासदेव उनको उन्हींके चक्रसे मार गिरायेंगे।" ये सब बातें सुन और भव्य जीवों से भरी हुई उस सभाको देख, हर्षित होते हुए भरतपतिने प्रभुसे पूछा,- "हे जगत्पति ! मानों तीनों लोक यहीं आकर इकट्ठे हो गये हैं, ऐसी इस सभामें जहाँ तियञ्च, नर और देव तीनों आये हुए हैं, क्या कोई ऐसा पुरुष है, जो आपकी ही भाँति तीर्थको प्रवृत्त कर, इस भरतक्षेत्रको पवित्र करेगा?" __ प्रभुने कहा,– “यह तुम्हारा पुत्र मरिचि, जो पहला परिब्राजक (त्रिदण्डो) हुआ है, वह आर्त और रौद्र ध्यानसे रहित हो समकितसे शोभित हो, चतुर्विध धर्मध्यानका एकान्तमें ध्यान करता हुआ स्थित है। उसका जीव अभी कीचड़ लगे हुए रेशमी वस्त्रकी तरह और मुंहको भाप लगनेसे दर्पणकी तरह मलिन हो रहा है ; पर अग्निसे शुद्ध किये हुए वस्त्र तथा अच्छी जाति. वाले सुवर्णकी तरह शुक्ल ध्यान-रूपी अग्निके संयोगसे वह धीरे * ये प्रतिवासुदेव नरकमें जानेवाले होंगे।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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