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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व पर सींग मारते और अपने कन्धे घिस कर अपनी खुजली मिटाया करते थे। बाघिनोंके झुण्ड अपने शरीरको उनके पर्वतकी तलहटीकेसे शरीर पर टेक कर रातको सोया करते थे। जंगली हाथी सलकी-वृक्षके पल्लवके भ्रममें पड़ कर उन महात्माके हाथपैरोंको बैंचते थे; पर जब नहीं बैंच सकते थे, तब शर्माकर लौट जाते थे। चवरी गायें निःशंक चित्तसे वहाँ आकर आरेकी तरह अपनी काँटेदार विकराल जिह्वासे सिर ऊपर उठाकर उन महात्माके शरीरको चाटती थीं। मृदङ्गके ऊपर लगी हुई चमड़े की बद्धियोंकी तरह उनके शरीर पर सैकड़ों शाखाओं वाली लताएँ फैली हुई थीं। उनके शरीर पर चारों ओर शरस्तम्भजातिके तृण उगे हुए थे, जो ठीक ऐसे मालूम पड़ते थे, मानों पुराने स्नेहके कारण बाणोंके तरकस उनके कन्धे पर शोभित हो रहे हों। वर्षा ऋतुके कीचड़में गड़े हुए उनके पैरोंको भेदकर वहुतसे नोकदार दर्भ उग आते थे, जिनमें कनखजूरे चला करते थे। लताओंसे ढके हुए उनके शरीर पर बाज़ और अन्य पक्षी परस्परका विरोध त्याग कर घोंसले बनाकर रहते थे। वनके मोरोंकी ध्वनि सुनकर डरे हुए हज़ारों बड़े-बड़े सर्प घनी लताओं वाले उन महात्माके शरीरके ऊपर चढ़ जाते थे। शरीर पर लटकते हुए लम्बे-लम्बे साँपोंके कारण वे महात्मा बाहुबली हज़ार हाथों वाले मालूम पड़ने लगते थे। उनके चरणके ऊपर बने हुए बिलोंमेंसे निकलते हुए सर्प उनके पैरमें लिपट जाते और ऐसे मालूम पड़ते थे, मानों उनके पैरोंके कड़े हों। ...
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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