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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र पर पड़ती है, वैसेही बाहुबलीने उस दण्डका आघात चक्रीके हृदय पर बड़ी निर्भयताके साथ किया। चक्रीका बड़ा ही मज़बूत वस्तर भी इस प्रहारको न सह सका और मिट्टीके घड़ेकी तरह चूर-चूर हो गया। बख्तरके न रहनेसे चक्रवत्ती बादल रहित सूर्य और धूम -हीन अग्निके समान दिखाई देने लगे। सातवीं मदावस्थाको प्राप्त होनेवाले हाथीकी तरह भरत-राज क्षणभर विह्वल होकर कुछ भी न सोच सके। थोड़ी देर बाद सावधान होकर प्रिय मित्रके समान अपनी भुजाओंके पराक्रमका अवलम्बन कर, वे फिर दण्ड उठाये हुए बाहुबली पर लपके। दाँतसे ओठ काटते हुए और भौंहें चढ़ाये भयङ्कर दीखते हुए भरतराजा ने बड़वानलके चक्करकी तरह दण्डको खूब घुमाया और कल्पांत कालका मेघ जैसे बिजलीका दण्ड चलाकर पर्वतका ताड़न करता है, वैसेही बाहुबलीकेमस्तक पर उस दण्डका वार किया। लोहेकी निहाई पर रखे हुए वज्रमणिकी भांति उस चोटको खाकर बाहुवली घुटने तक पृथ्वीमें धंस गथे। मानों अपने अपराधसे डर गया हो, ऐसा वह चक्रवर्तीका दण्ड वज्रके बने हुएके समान बाहुबली पर प्रहार कर आप भी चूर-चूर हो गया। उधर घुटने तक पृथ्वीमें फंसे हुए बाहुबली-पृथ्वीमें कीलकी तरह गड़े हुए पर्वत और पृथ्वीके बाहर निकलते हुए शेषनागकी तरह शोभित होने लगे। उस प्रहारकी वेदनासे बाहुबली इस प्रकार सिर धुनाने लगे, मानों अपने बड़े भाईका पराक्रम देख कर उन्हें अपने अन्त: करणमें बड़ा अचम्भा हुआ हो। आत्मा
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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