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________________ आदिनाथ चरित्र ४६० प्रथम पर्व गये और भरत क्षेत्र के छहों खण्डोंकी विजय करके प्राप्त की हुई बड़ी कीर्त्ति को उनके नेत्रोंने आँसुओंके बहाने पानीमें डाल दिया, ऐसा मालूम पड़ा । प्रातः काल हिलते हुए वृक्षोंकी तरह सिर. हिलाते हुए देवताओंने उससमय बाहुबलीके ऊपर फूलोंकी वर्षा की। सूर्योदय के समय पक्षी जिस प्रकार कोलाहल कर उठते हैं, वैसेही बाहुबलीकी विजय होते ही सोमप्रभ आदि वीरोंने हर्षसे कोलाहल करना शुरू किया 1 कीर्त्तिरूपी नर्त्तकीने मानों नृत्य प्रारम्भ कर दिया हो, वैसेही तैयार खड़े बाहुबलीके से - निकों ने जयके बाजे बजाने शुरू किये । भरत रायके वीर तो ऐसे मन्द-पराक्रम हो गये, मानों सबके सब मूर्च्छित हो गए हों, सो गये हों या रोगातुर हो गये हों । अन्धकार और प्रकाशवाले मेरु पर्वत के दोनों पार्श्वोकी तरह एक सेनामें खेद और दूसरीमें हर्ष फैल गया । उस समय बाहुबलीने चक्रवर्तीसे कहा,"देखना, कहीं यह न कह बैठना, कि मैं कालतालीय न्यायसे जीत गया हूँ । यदि जीमें ऐसी ही धारणा हो, तो अबके वाणीसे युद्ध करके देख लो । ” बाहुबलीकी यह बात सुन, पैर से कुचले हुए साँपकी तरह क्रोधसे भरकर चक्रवर्त्तीने कहा, “भला इस तरह भी तो जीत जाओ । " इन्द्र का हाथी गरज़ता है और मेघ राजाने भी घोर सिंहनाद किया । : पर उसके दोनों किनारे पानीसे तदनन्तर जैसे ईशानइन्द्रका वृषभ नाद करता है, सौधर्म ठनकता है, वैसेही भरत जैसे बड़ी नदीमें बाढ़ आने लबालब भर जाते हैं, वैसेही
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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