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________________ आदिनाथ-चरित्र ४३८ प्रथम पर्व ___ इधर बाहुबली स्नान कर, देवपूजाके लिये मन्दिरमें गये। बड़े आदमी किसो कायके झंझटमें पड़कर अपने चित्तको खिरताको नहीं खो देते। देवमन्दिर में जा, जन्माभिषेकके समय इन्द्रको तरह उन्होंने ऋषभस्वामीकी प्रतिमाको सुगन्धित जलसे स्नान कराया। इसके बाद निःकषाय और परम श्रद्धा-युक्त होकर उन्होंने दिव्य-गन्ध-पूर्ण कषाय-वस्त्रसे, मनमानी श्रद्धाके साथ उस प्रतिमाका मार्जन किया और इसके पश्चात् लालरंगके वस्त्रकी मानों रचना की हो, ऐसा यक्षकर्दमसे उस प्रतिमाका विलेपन किया। सुगन्धमें देववृक्ष पुष्पोंकी मालाकीबहनसी विचित्र पुष्पोंकी मालासे उन्होंने प्रतिमाका अर्चन किया। सोनेकी धूपदानी में दिव्य धूप दिया। उसके धुएं से ऐसा मालूम पड़ने लगा, मानों नीले कमलोंसे पूजाकी जा रही हो। इसके बाद मकरराशिमें आये हुए सूर्यके समान उत्तरासङ्ग कर, प्रकाशमान आरतीको प्रतापके समान ग्रहण कर, आरती उतार, अन्तमें हाथ जोड़कर आदि भगवान्को प्रणाम कर, उन्होंने भक्तिपूर्वक इस प्रकार स्तुति करनी आरम्भ की,__ “ हे सवज्ञ ! मैं अपनी जड़ता दूर कर आपकी स्तुति कर रहा हूँ; क्योंकि आपकी यह दुर्निवार भक्ति मुझे वाचाल कर रही है। हे आदि-तीर्थश! आपकी जय हो, आपके चरण-नखको कान्तियाँ संसाररूपी शत्रुसे त्रास पाये हुए प्राणियोंको वज्रपंजरका काम देती है। हे देव ! आप के चरण-कमलोंके दर्शन करनके लिये दूर-दूरसे जो लोग राजहंसके समान प्रतिदिन
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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