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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व की इच्छा करनेवाले ये राजा मानों उँगली पर मेरुपर्वत उठाने जा रहे हैं, इस युद्ध में छोटे भाईने कहीं बड़ेको जीत लिया अथवा बड़ेनेही छोटेको परास्त कर दिया, तो दोनोंही अवस्थाओंमें महाराजको ही भारी अपयश प्राप्त होगा।" सैन्योंकी उड़ायी हुई धूलकी बाढ़से विन्ध्याचलकी वृद्धिकी तरह चारों ओर अन्धकार फैलाते; अश्वोंके हषारव, गजोंके गर्जन, रथोंके चीत्कार और योद्धाओंके कराघातों इन चारो प्रकार के शब्दोंसे नगाड़ेके शब्दकी तरह दिशाओंको नादमय करते, ग्रीष्म तुके सूर्यकी तरह रास्तेकी नदियोंको सोखते; उत्कट पवनकी भांति मार्गके वृक्षोंको उखाड़ कर फेकते ; सेनाकी ध्वजाओंके वस्त्रसे आकाशको बगुलोंसे भरा हुआ बनाते ;सैन्यके भारसे दबी हुई पृथ्वीको हाथियोंके मदसे शान्त करते और प्रतिदिन चक्रके बतलाये हुए रास्तेपर चलते हुए महाराज उसी प्रकार बहलोदेशमें आ पहुँचे, जैसे सूर्य दूसरी राशिमें संक्रमण करता है। उस देशकी सीमाके पास पहुँचकर उन्होंने पड़ाव डाला और समुद्रकी तरह मर्यादा बाँधकर वहीं टिक रहे। इसी समय सुनन्दाके पुत्र बाहुबलीने राजनीति रूपी भवनके स्तम्भ-स्वरूप चरोंके मुँहसे चक्रवर्तीके आनेका समाचार सुना। सनतेही उन्होंने भी अपनी प्रतिध्वनिसे स्वर्गको भी शब्दायमान करनेवाली दुन्दुभि बजायी। प्रस्थानही कल्याणकारी हो, इस लिये उन्होंने मूर्तिमान कल्याणकी तरह भद्र-गजेन्द्रके ऊपर उत्साह की तरह सवारी की। बड़े बलवान, बड़े उत्साही, कार्यमें एक
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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