SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ-चरित्र . ४१८ प्रथम पर्व ढाल फेरने लगे, कितने ही तलवार नचाने लगे, कितने ही फेंकने के लिये चक्र सुधारने लगे, किसी ने मुद्गर उठाया, कोई त्रिशल सम्हालने लगा, कोई तरकस बाँधने लगा, कोई दण्डग्रहणकरने लगा और कोई परशुकी प्रेरणामें लग गया। उनकी यह हालत देख चारों ओरसे पग-पग पर अपने मौत धहरानेका समान देख कर सुवेग चंचल चरणोंसे चलता हुआ नरसिंह बाहुबलीके सिंह द्वार से बाहर निकला। वहाँसे रथमें बैठकर चलते हुए उसने नगरके लोगोंको इस प्रकार आपसमें बातें करते हुए सुना, पहला-आ०-यह कौन नया आदमीराजद्वारसे बाहर निकला? दुसरा आ०-यह तो भरत राजाका दूत मालूम पड़ता है। पहला, तो क्या इस पृथ्वीमें बाहूबलीके सिवा और राजा हैं ? दूसरा,-अयोध्यामें बाहुबलीके बड़े भाई भरत राज्य करते हैं। पहला,-उन्हों ने इस दूतको यहाँ किसलिये भेजा था ? दूसरा,-अपने भाई राजा बाहुबलीको बुलानेके लिये। पहला, इतने दिनों तक हमारे राजाके भाई कहाँगये हुए थे। दूसरा,-भरतक्षेत्रके छओ खण्डोंको जीतने गये हुए थे। पहला,-आज इतनी उत्कण्ठासे उन्होंने अपने छोटे भाईको क्यों बुलवाया? दूसरा,-अन्यान्य छोटे-छोटे राजाओंकी तरह इनसे भी अपनी सेवा करानेके लिये। पहला,-और-और राजाओंको जीत कर वह अब इस सूली पर चढ़नेको क्यों तैयार हो रहे हैं? .
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy