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________________ आदिनाथ-चरित्र २४ प्रथम पर्व आगे-आगे धन सार्थवाह चलता था। उसके पीछे-पीछे उसका मित्र मणिभद्र चलता था। उनके दोनों ओर सवारोंका दल चलता था। उस समय सार्थवाह के सफेद छत्रोंके देखने से शरद् ऋतुके बादलों का और मोरकी पूंछ के छातों से वर्षा ऋतुके मेघों का भान होता था; यानी जब सफेद छातों पर नज़र जाती थी, तब आकाश शरद् के मेघोंसे और जब मयूर-पुच्छ के छातों पर दृष्टि पड़ती थी, तब वर्षा-काल के बादलों से व्याप्त मालूम होता था। घनवात यानी पृथ्वी की आधारभूत वायु जिस तरह पृथ्वी को वहन करती है; उसी तरह सार्थवाह के ऊँट, बलध, साँड, खच्चर और गधे उसके कठिन से ढोने योग्य सामान को ढो रहे थे। वे इतनी तेजी से चल रहे थे कि, उनके कदम ज़मीन को छूते मालूम न होते थे। ऐसा जान पड़ता था, गोया हिरनों की पीठों पर गौने लाद दी गई हैं। ऊँट इतनी तेजी से चल रहे थे कि, ऊँची-ऊँची पंखों वाले पक्षीसे मालूम होते थे। अन्दर बैठे हुए जवानों के क्रीड़ा करने योग्य गाड़ियाँ ऐसी मालूम होती थीं, मानों चलते-फिरते घर हों। विशालकाय मोटे-मोटे कन्धों वाले भैंसे, आकाश से पृथ्वी पर आये हुए बादलों के समान, जल को ढोते और लोगोंकी प्यास बुझाते थे। गाड़ियों के पहियोंके चूँ चूँ शब्दों से ऐसा मालूम होता था, मानो सार्थवाह के सामान के बोझ से दबी हुई पृथ्वी चीत्कार कर रही हो । बैल, ऊँट और घोड़ों के पैरोंसे उड़ी हुई धूलि आकाश में ऐसी छा गई थी, कि सूचीभेद अन्धकार हो गया था हाथ को हाथ न सूझता
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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