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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व .. . . . . और मंगलिक किये गये थे। कहीं चोनी कपड़ोंसे, कहीं रेशमी कपड़ोंसे और कहीं दिव्य वस्त्रोंसे लगाई हुई पताकाओंकी पंक्तियोंसे वह महल शोभायमान था। उस महलके आँगनमें कहीं कपूरके पानीसे, कहीं फूलोंके रससे और कही हाथियोंके मदजलसे छिड़काव किया गया था। उसके ऊपर जो सोनेके कलश रखे थे, उससे ऐसा मालूम होता था, गोया उनके मिश से वहाँ सूर्यने विश्राम किया है। उस राजगृहके आँगनमें अग्र. वेदी पर अपने पैर जमाकर छड़ीदारने हाथका सहारा देकर महाराजको हाथीसे उतारा और प्रथम आचार्यके समान अपने सोलह हजार अंगरक्षक देवोंका पूजन कर महाराजने उन्हें बिदा किया। इसी तरह बत्तीस हज़ार राजे, सेनापति, प्रोहित, गृहपति और वर्द्धकिको भी महाराजने विसर्जन किया। हाथियोंको जिस तरह आलान-स्तम्भसे बाँधनेकी आज्ञा देते हैं; उसी तरह तीनसौ तिरेसठ रसोइयोंको अपने-अपने घर जानेकी आज्ञा दी। उत्सवके अन्तमें अतिथिकीतरह सेठोंको, *श्रेणी-प्रश्रेणियोंको, दुर्गपालों और सार्थवाहोंको भी जाने की छुट्टी दी। पीछे इन्द्राणी के साथ इन्द्रकी तरह,स्त्रीरत्न सुभद्राके साथ बत्तीस हज़ार राज. कुलमें जन्मी हुई रानियोंके साथ उतनी ही; यानी बत्तीस हज़ार देशके आगेवानोंकी कन्याओंके साथ बत्तीस-बत्तीस पात्रवाले उतने ही नाटकोंके साथ मणिमय शिलाओंकी पंक्तिपर दृष्टि * माली वगैरः नौ जातियाँ श्रेणी कहलाती हैं और घांची प्रभृति नौजातियाँ प्रश्रेणी कहलाती हैं।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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