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________________ आदिनाथ-चरित्र ३७२ प्रथम पवं प्रपाता गुफा खोलनेका हुक्म दिया । सेनापति ने मंत्र के समान, नाट्यमाल देवको मनमें याद करके, अष्टमकर पौषधालय में पौधवत ग्रहण किया । अष्टमके अन्तमें पौषधागारसे निकल कर प्रतिष्ठा में श्रेष्ठ आचार्य जिस तरह बलि-विधान करता है, उसी तरह बलि-विधान किया 1 फिर प्रायश्चित्त और कौतुक मंगलकर, थोडेसे कीमती कपड़े पहन, हाथमें धूपदानी ले, गुफा के पास जा, उसे देखते ही पहले नमस्कार कर, उसके द्वारकी पूजा की और वहाँ अष्टमंगलिक लिखे । इसके बाद किवाड़ खोलने के लिये सात आठ कदम पीछे हटा इसके बाद मानो किवाड़ खोलनेकी सुवर्णमय कुंजी हो, इस तरह दण्डस्त्र ग्रहण किया और उससे द्वारपर प्रहार किया - चोटें मारी । सूर्य की किरणोंसे जिस तरह कमल खिलता है; उसी तरह दण्डस्त्रकी चोटोंसे दोनों द्वार खुल गये । गुफाका द्वार खुलने की ख़बर महाराजको दी गई । समाचार मिलते ही हाथी के कन्धे पर सवार हो, हाथीके दाहने कुम्भस्थलके ऊँचे स्थान पर " मणिरत्न" रखकर महाराजने गुफा में प्रवेश किया 1 आगे-आगे महाराज और पीछे-पीछे फौज चलती थी। गुफामें अँधेरा था, इसलिये महाराज पहलेकी तरह कौंकिणी रत्नसे मंडल बनाते हुए गुफा में चले | जिस तरह दो सखियाँ तीसरीसे मिलती है, उसी तरह गुफाकी पश्चिम ओर की दीवार में से निकल कर, पूरबकी दीवार के नीचे होकर उन्मग्ना और निमग्ना नामकी दो नदियाँ गंगामें मिलती हैं । वहाँ
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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