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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व वहाँ ठहराकर, हाथमें कांकिणी रत्न ग्रहण किया। उस कांकिणी रत्नसे, उस पर्वतकी पूरबी चोटी पर उन्होंने लिखा_ “अवसर्पिणी कालके तीसरे आरेके प्रान्त भागमें, मैं चक्रवर्ती हुआ हूँ, ये शब्द लिखकर चक्रवर्ती अपनी छावनीमें आये और उसके लिए किये हुए अष्टम तपका पारणा किया। फिर हिमालय कुमारकी तरह, उस ऋषभकूटपतिका, चक्रवर्तीकी सम्पत्तिके योग अष्टान्हिका उत्सव किया । नमि और विनमि के साथ युद्ध करना। गंगा और सिन्ध नदीके बीचकी जमीनमें मानो समाते न हों इस कारण आकाशमें उछलने वाले घोड़ोंसे, सेनाके बोझसे ग्लानिको प्राप्त हुई पृथ्वी पर छिड़काव करना चाहते हों, ऐसे पदजलके प्रवाहको झराने वाले गन्धहस्तियोंसे, उत्कट चक्रधार से पृक्वीको सीमान्तसे भूषित करने वाले उत्तम रथोंसे, और मानो नराद्वतको बताने वाले अद्वैत पराक्रमशाली भूमिपर फैलने वाले करोड़ों पैदलो से घिरे हुये चक्रवर्ती महाराज सवारो का अनुसरण करके चलने वाले जात्यगजेन्द्रकी तरह, चक्रके अनुगत होकर, वैताढ्य पर्वत पर आये। जहाँ शबर स्त्रियां-भील रमणियाँ आदीश्वरके आनन्दित गीत गाती थीं, वहीं पर्वतके उत्तर भागमें महाराजने छावनी डाली। वहां रह कर भी उन्होंने नमि विनमि नामके विद्याधरों पर दण्ड मांगनेवाला बाण फेंका। बाणको देखते ही दोनों विद्याधरपति कोपाटोप कर-भयङ्कर क्रोधके आवेशमें आ, इस प्रकार विचार करने लगे
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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