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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र विना न था । युद्ध रस की इच्छावाले वे, मानो एक आत्मावाले हों इस तरह, एकदम से भरतकी सारी सेना पर टूट पड़े । ओलों की वर्षा करने वाले प्रलयकाल के मेघों की तरह, शस्त्रों की झड़ी लगाते हुए म्लेच्छ, भरत की आगेकी सेना से बड़े ज़ोरों के साथ युद्ध करने लगे। मानो पृथ्वी में से, दिशाओं के मुखों से और आकाशमें से, पड़ते हों इस तरह, चारों ओर से शस्त्र पड़ने लगे। दुर्जनों के वचन जिस तरह सभी के दिलों में लगते हैं, इस तरह किरात लोगों के वाणों से भरत की सेना में कोई भी ऐसा न रहा, जिसके शस्त्र न छिदा हो , बाणों से कोई भी अछूता न बचा । म्लेच्छों के आक्रमण से चक्रवर्तीके आगे वाले घुड़सवारसमुद्रकी वेला से नदीके पिछले हिस्से की तरंगके समान-पीछे हट कर चलायमान होने लगे ; अर्थात् समुद्र की लहरों से जिस तरह नदी के पिछले भागकी तरंगे पीछे को हटती है; उसी तरह म्लेच्छों के हमलों से राजा के आगे के घुड़सवार पीछे को हटने को मजबूर हुए। म्लेच्छ-सिंहों के वाण रूपी सफेद नाखुनों से चोट खाकर चक्रवर्ती के हाथी बुरी तरह से चिवाड़ने लगे। म्लेच्छ वीरों के प्रचण्ड दण्डायुधों की मार से पैदल सिपाही गैंदोंको तरह ज़मीन पर लुढ़कने लगे। वज्राघात से पर्वतों की तरह यवन-सेनाने गदा के प्रहारों से चक्रवर्ती की अगली सेना के रथ चूर्ण कर डाले । संग्राम रूपी सागर में, तिमिंगल जातके मगरों से जिस तरह मछलियाँ प्रस्त और प्रस्त होती हैं, उस तरह म्लेच्छ लोगों से चक्रवर्ती की सेना ग्रस्त और त्रस्त हुई २३
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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