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________________ प्रथम पर्व ३४. आदिनाथ चरित्र प्रयोग करते हैं। वहाँ वैताढ्य पर्वत पर सञ्चार करने वाली विद्याधरों की स्त्रियोंको स्तम्भन करने या रोकने में औषधिरूप महर्द्धिक अष्टान्हिका उत्सव किया, और मांत्रिक जिस तरह मण्डल बनाता है, उस तरह सेनापतिने अखण्ड तन्दुलों या चावलों से वहाँ अष्टमंगलिक बनाये । फिर इन्द्र-वज्रके समान - शत्रुओं का नाश करने वाला चक्रवर्तीका दण्डरत्न अपने हाथमें लिया और किवाड़ों पर चोट मारनेकी इच्छासे वह सात-आठ क़दम पीछे हटा ; क्योंकि हाथी भी प्रहार करने या चोट करनेकी इच्छा से पीछे हटता है। पीछे सेनापतिने दण्डले किवाड़ पर तीन चोटें मारी और बाजेकी तरह उस गुफाको बड़े जोर से गुजाई । तत्कालही खूब ज़ोरसे मींची हुई आँखोंकी तरह, वैताढ्य पर्वत के खूब ज़ोर से बन्ध किये हुए वज्र निर्मित किवाड़ खुल गये I दण्डेकी चोटोंसे खुलने वाले ये किवाड़ ज़ोर ज़ोर से चीखते हों, इस तरह तड़ तड़ शब्द करने लगे 1 उत्तर दिशाके भरतखण्डको जय करने में प्रस्थान मंगल रूप उन किवाड़ोंके खुलनेका वृत्तान्त चक्रवर्त्तीको जनाया । इस ख़बर के मिलते ही, गजरत्न पर, सवार होकर, प्रौढ़ पराक्रम वाले महाराजने चन्द्रकी तरह तमिस्रा गुफा में प्रवेश किया । प्रवेश करते समय, नरपतिने चार अंगुल प्रमाणका सूर्यके समान प्रकाशमान् मणिरत्न ग्रहण किया । वह एक हज़ार यक्षों अधिष्ठित था । यदि वह शिखाबन्धके समान मस्तक पर धारण किया जाता हैं, चोटीमें बाँधा जाता है, तो तिर्यञ्च देव और
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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