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________________ आदिनाथ चरित्र २२ प्रथम पर्व पशुओं से सबकी रक्षा करेंगे। जो कोई अशक्त होगा, उसकी पालना वह अपने बन्धुओंकी तरह करेंगे ।" इस तरह डौंडी पिटजाने पर, कुलाङ्गनाओंने उसका प्रस्थान-मंगल किया। इसके बाद वह आचार युक्त सार्थवाह सेठ, शुभ मुहूर्त्त में, रथमें बैठ कर, शहर के बाहर चला। सेठ के कूच करने के समय जो भेरी बजी, उसको वसन्तपुर निवासियोंने अपने बुलाने वाला हरकारा समझा । भेरी - नाद सुन-सुनकर, सभी लोग तैयार हो गये और नगर के बाहर आगये । धर्मघोष आचार्य | इसी समय अपनी साधुचर्या और धर्माचरण से पृथ्वी को पवित्र करने वाले एक धर्मघोष नामक आचार्य उस साहूकार के पास आये। उन्हें देखते ही वह साहूकार विस्मित होकर अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर उन सूर्यके समान तेजस्वी और कान्तिमान् आचार्य को नमस्कार किया और उनसे पधारनेका कारण पूछा। आचार्य महाराज ने कहा- “हम तुम्हारे साथ वसन्तपुर चलेंगे ।" सार्थवाह बोला- "महाराज ! आज मैं धन्य हूँ, कि आप जैसे साथ चलने योग्य महापुरुष मेरे साथ चलने को पधारे हैं। आप सानन्द मेरे साथ चलिये ।” इसके बाद उसने रसोई बनाने वालोंसे कहा कि, तुम लोग महाराजके लिए अन्न पानादिखाने पीनेके समान सदा तैयार रखना । सार्थवाह की यह आज्ञा सुनते ही आचार्य ने कहा- “साधुओं
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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