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________________ प्रथम पर्व ३४३ आदिनाथ चरित्र मात्र से जीत लिया उसने कालमुख जातिके म्लेच्छों को जीत लिया इससे: वे भोजन न करने पर भी मुँह में पाँच ऊंगलियाँ डालने लगे । उसके फैलने से जोनक नामके म्लेच्छ लोग वायुसे वृक्षके पल्लवों की तरह पराङ्मुख होगये । बाज़ीगर या सपेरा जिस तरह 1 वहाँसे आगे सब तरह के साँपों को जीत लेता है, उसी तरह उसने वैताढ्य पर्वत के पास रहने वाली सब जातियाँ उसने जीत लीं । अपने प्रौढ़ प्रताप को बेरोक टोक फैलाने वाले उस सेनापति ने चलकर, जिस तरह सूर्य सारे आकाश को आक्रान्त कर लेता है: उसी तरह उसने कच्छ देश की सारी पृथ्वी आक्रान्त करली | जिस तरह सिंह सारे बनको दबा लेता है; उसी तरह उसने सारे निष्कूट को दबा कर, कक्छ देश की समतल मूमि में आनन्दसे डेरा डाला । जिस तरह स्त्रियाँ पतिके पास आती हैं, उसी तरह म्लेच्छ देशके राजा लोग भक्ति से मेंट ले लेकर, सेनापति के पास आने लगे । किसी ने सुवर्ण गिरिके शिखर या मेरू पर्वत की चोटी जितना सुवर्ण और रत्नराशि दी । किसीने चलते फिरते बिन्ध्याचल जैसे हाथी दिये । किसीने सूरज के घोड़ोको उल्लंघन करने वाले - चाल और तेजीमें परास्त करने वाले घोड़े दिये और किसीने अञ्जन से रचे हुए देवरथ जैसे रथ दिये। इनके सिवा, और भी सार रूप पदार्थ उन्हों ने दिये । क्योंकि पहाड़ों में से नदियों द्वारा खींचे हुए रत्न भी अनुक्रम से शेषमें, रत्नाकर मे ही आते हैं। इस तरह भेटें देकर उन्होंने सेनापति स कहा" आज से हम लोग तुम्हारी आज्ञा पालन करने वाले – गुलाम .
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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