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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व अपने उज्ज्वल वसुनन्द नामक आयुध से मानों अनेक चन्द्र वाला हो—इस तरह करने लगा। कोई मृत्युकी दन्त-पंक्तिसे बनाए गये हों ऐसे अपने तीक्ष्ण भालोंको चारो और उछालने लगे। कोई अग्निकी जीभ जैसी फरसियों को फेरने लगे ; कोई राहुके समान भयङ्कर पर्यन्त भाग वाले मुद्गर फेरने लगे। कोई बज्रकी उत्कट धार जैसे त्रिशूल को ग्रहण करने लगे और कोई यमराज के दण्ड जैसे प्रचण्ड दण्ड को ऊँचा करने लगे। कितने ही शत्रुको विस्फोट करने में कारणरूप अपने भुज दण्डों को अस्फोटन करने लगे। कितने ही मेघनाद जैसे उर्जित सिंहनाद करने लगे; कितने ही 'मारो, मारो' इस तरह कहने लगे ; कितने ही पकड़ो, पकड़ो' इस तरह कहने लगे। कितने ही खड़े रहो, खड़े रहो' और कितने ही 'चलो चलो' इस तरह कहने लगे। मागध पतिका सारा परिवार इस तरह विचित्र कोपकी चेष्टा करने लगा। इसके बाद प्रधान मन्त्रोने आकर बाण को अच्छी तरह देखा । इतने में उसे उसके ऊपर मानो दिव्य मन्त्राक्षर हों ऐसे उदार और बड़े सारवाले नीचे के मुताबिक अक्षर दीखे:-- __“साक्षात् सुर असुर और नरों के ईश्वर ऋषभ स्वामी के पुत्र भरत चक्रवर्ती तुम्हे ऐसा आदेश करते हैं, कि यदि राज्य और जीवन की कामना हो तो हमें अपना सर्वस्व देकर हमारी सेवकाई करो॥” इसका खुलासा यह है कि, उस तीर पर यह लिखा हुआ था
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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