SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२१ आदिनाथ चरित्र ग्रहण करते हैं, उसी तरह उत्तमोत्तम गजराज गङ्गा के निर्मल प्रबाह से इच्छानुसार जल ग्रहण करने लगे 1 अत्यन्त चपलतासे बारम्बार कूड़ने वाले घोड़े गङ्गा किनारे पर तरंगों का भ्रम उत्पन्न करने लगे और बड़ी मिहनत से गङ्गा के भीतर घुसे हुए हाथी, घोड़े, भैंसे, और सांड ऐसा भ्रम उत्पन्न करने लगे मानों उस उत्तम नदी में नये नये प्रकार के मगर मच्छ प्रभृति जल जीव हों । अपने किनारे पर डेरा डालने वाले राजाके अनुकूल हो, इस तरह गङ्गा नदी अपनी उछलने वाली लहरों की बूंदो या छीटों से राजा की फौज की थकान को जल्दी जल्दी दूर करने लगी। महाराज की जबर्दस्त फौज या बड़ी भारी सेना से सेवित हुई गङ्गा नदी शत्रुओं की कीर्ति की तरह कृश होने लगी अर्थात् महाराज की सेना इतनी बड़ी थी कि उसके गङ्गाके किनारे ठहरने और उसका जल काममें लाने से गङ्गा क्षीणकाय होने लगी- उसका जल कम होने लगा । भागीरथी के तीर पर उगे हुए देवदारु के वृक्ष सेना के गजपतियों के लिये प्रयत्तसिद्ध बन्धनस्थान होगये, यानी गङ्गा तट पर लगे हुए देवदारु के वृक्ष, बिना प्रयत्न के; हाथियों के बाँधने के खूटों का काम देने लगे । हाथियोंके महाबत हाथियोंके लिए पीपल, सल्लकी, कर्णिकार और गूलर के पत्ते कुल्हाड़ियों से काटते थे । पंक्तिबद्ध कतारों में खड़े हुए हज़ारों घोड़े अपने ऊँचे ऊँचे कर्णपल्लवों से तोरण से बनाते हुए शोभायमान थे अर्थात् हज़ारों घोड़े जो कतार बाँधे खड़े थे, उनके ॐ चेऊँ चे कानों के देखने से तोरणों का धोखा होता था । ; २१ प्रथम पब
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy