SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र : 1 हस्तलाघव से राजाको सब तरहसे संवाहन किया। इसके पीछे, आदर्श की तरह, अम्लाव कान्तिके पात्ररूप उस राजा के दिव्य चूर्णका उबटन मला । उस समय ऊँची डण्डीवाले नये कमलकी बावड़ी की तरह शोभायमान् कितनी ही स्त्रियाँ सोनेके जल - कलश लेकर खड़ी थीं। कितनी ही स्त्रियां मानो जल, धन रुप होकर कलशको आधार मय हुआ हो इस तरह दिखाती हुई चाँदीके कलश लेकर खड़ी थीं कितनी ही स्त्रियाँ अपने सुन्दर हाथोंमें लीलामय सुन्दर नील कमल की भ्रान्ति करने वाले इन्द्रनीलमणि के घड़े लिये हुए थी ; और कितनी ही सुभ्रु बालाओं - कितनी ही सुन्दरी षोडशी रमणियोंने अपने नख - रत्नकी कान्ति रूपी जलसे भी अधिक शोभावाले दिव्य रत्नमय घड़े ले रखे थे जिस तरह देवता जिनेन्द्र भगवान् को स्नान कराते हैं; उसी तरह इन बालाओं ने अनुक्रम से सुगन्धित और पवित्र जल धाराओं से धरणी पति को स्नान कराया। इसके बाद राजाने दिव्य विलेपन लगवाया और दिशाओंके आभाष-जैसे उज्ज्वल वस्त्र पहने। फिर मानो यश रूपी नवीन अङ्कुर हो, ऐसा मंगल मय चन्दन का तिलक उसने ललाट पर लगाया । जिस तरह आकाश मार्ग बड़े बड़े तारों समूह को धारण करता है, उसी तरह ज्ज्वल मोतियों के अलंकार - गहने पहने। महल शोभा देता है, उसी तरह अपनी किरणोंसे सूर्य को लजाने वाले मुकुट से वह सुशोभित हुआ । बारांगनाओं के कर कमलों से बारम्बार उठने वाले कानों के कर्णफूल जैसे दो चँवरोंसे वह के यशपुञ्जके समान उ जिस तरह कलशसे ३१७
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy