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________________ प्रथम पर्व २६६ आदिनाथ चरित्र है T यह जवान बिल्ली अपने आगे पीछे बच्चे की तरह फिरने वाले चूहे को आलिङ्गन करती है । यह सर्प अपने शरीरको कुण्डलाकर करके इस न्यौले के पास मित्र की तरह बैठा है। हेदेव ! ये निरन्तर वैर रखने वाले भी दूसरे प्राणी यहाँ निर्वैर होकर बैठे हैं। इन सब वातों का कारण आपका अतुल्य प्रभाव हैं ।" महीपति भरत इस तरह जगत्पतिको स्तुति करके, अनुक्रमसे पीछे सरक कर, स्वर्गपति इन्द्र के पीछे बैठ गये । तीर्थनाथ के प्रभाव से उस चार कोस के क्षेत्र में करोड़ों प्राणी बिना किसी प्रकार की निर्बाधता या दिक्कतके बैठ गये । भाषाओं को स्पर्श करने वाली और पैंतीस अतिशय वाली एवं योजन - गामिनी वाणी से इस तरह देशना — उपदेश देना आरम्भ किया । उस समय समस्त भगवान् की देशना । महीपति भरत इस भाँति त्रिलोकी नाथकी स्तुति कर, अनुक्रम से पीछे हट स्वर्गपति इन्द्रके पीछे बैठ गया । वह मैदान केवल ८ मीलके विस्तार का था, पर तीर्थनाथ के प्रभाव से करो - ड़ों प्राणी उसी मैदानमें बिना किसी प्रकार की सुकड़ा - सुकड़ी और अड़ास बैठ गये 1 उस समय समस्त भाषाओं का स्पर्श करने वाली, पैंतीस अतिशयवाली और आठ मील तक पहुँचनेवाली आवाज़ से ब्रभुने इस प्रकार देशना - उपदेश देना आरम्भ किया“आधि - व्याधि, जरा और मृत्यु से व्याकुल यह संसार समस्त
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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