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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र गंगा-जमुना से सेवित प्रयागराज जैसा दोखता था । उसके सिर पर मनोहर सफेद छत्र फिर रहा था। इसलिये पूर्णमासीके आधीरात के चन्द्रमासे जिस तरह पर्वत सोहता है, उसीतरह वह सोह रहा था । देवनन्दी - इन्द्रका प्रतिहार जिस तरह इन्द्रको राह दिखाता है; उसी तरह सोनेकी छड़ी वाला प्रतिहार उसके आगे आगे राह दिखाता चलता था । लक्ष्मी - पुत्रोंकी तरह, रत्न जड़ित गहने और ज़ेवरोंसे सजकर शहर के शाहूकार घोड़ों पर चढ़ चढ़कर उसके पीछे पीछे चलानेको तयार खड़े थे । जवान सिंह जिस तरह पर्वतकी शिला पर चढ़कर बैठता है; उसी तरह इन्द्रके सदृश बाहुबलि राजा भद्र जातिके सर्वोत्तम गजराज पर सवार हो गया । जिस तरह चूलिका से मेरु पर्वत शोभता है; उसी तरह मस्तक पर तरंगित कान्ति वाले मुकुटसे वह सुशोभित था । उसके दोनों कानों में जो दो मोतियोंके कुण्डल पड़े हुए थे, उनके देखनेसे ऐसा मालूम होता था, मामो उसके मुखकी शोभासे परा जित हुए जम्बू दीपके दोनों चन्द्रमा उसकी सेवा करनेके लिये आये हों । लक्ष्मी के मन्दिर स्वरूप हृदय पर उसने बड़े बड़े फार मोतियों का हार पहना था, वह हार उस मन्दिरका क़िला सा जान पड़ता था। भुजाओं पर उसने सोंनेके दो भुजबन्धर पहने थे, उनके देखने से ऐसा जान पड़ता था, गोया भुजा रूपी वृक्ष नयी लताओंसे घेरकर दृढ़ किये गये हैं। हाथोंके पहुचों या कलाइयों पर उसने मोतियोंके दो कड़े पहने थे, वे लावण्य रूपी नदी के तीर पर रहने वाले फैनके जैसे मालूम होते थे । २७६
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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