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भादिनाथ चरि
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प्रथम पव क्यों कर रहे हो ? ये स्वामी अब पहले की तरह परिग्रह धारी राजा नहीं हैं। वे तो अब संसार रूपी भंवर से निकलने के लिए समग्र सावद्य व्यापार को त्यागकर यति हुए हैं । जो भोग भोगने की इच्छा रखते हैं, वेही स्नान, अंगराग, आभूषण-गहने जेवर और कपड़े लेते और काममें लाते हैं । परन्तु प्रभुतो उन सब से विरक्त हैं, उनसे सख्त नफरत या घृणा होगई है। अतः इन्हें इन सब की क्या ज़रूरत ? जो काम देव के वशीभूत होते हैं, वही कन्याओं को स्वीकार करते हैं। परन्तु ये प्रभु तो काम को जीतने वाले हैं । अतः सुन्दरी कामिनी इनके लिए पाषाणवत पत्थरके समान है। जो राज्य भोगकी इच्छा रखते हैं, वेही हाथी, घोड़े, रथ, वाहन आदि लेते हैं, परन्तु प्रभुने तो संयमरूपी साम्राज्य ग्रहण किया है, अतः उन्हें तो ये सब जले हुए कपड़ोंके समान है। जो हिंसक होते हैं, वेही सजीव फलादिक ग्रहण करते हैं; परन्तु ये प्रभु तो समस्त प्राणियोंको अभयदान देने वाले हैं, अतः ये उन्हें क्यों लेने लगे? ये तो केवल एषणीय, कल्पनीय और प्रासुक अन्न आदिकको ग्रहण करते हैं । लेकिन तुम मढ़ लोग इन सब बातोंको नहीं जानते।"
उन्होंने कहा-“हे युवराज ! ये शिल्पकला या कारीगरीके जो काम आजकल होते हैं, ये सब पहले प्रभु ने ही बतायेथेस्वामीने सिखाये-बताये थे, इसीसे सब लोग जानते हैं और आप जो बातें कहते हैं, ये तो स्वामीने बताई नहीं, इसी लिये हम कैसे जान सकते हैं ? आपने ये बात कैसे जानी? आप इस बातके कहने लायक हैं, अतः कृपया बताइये।"