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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmanaraanar.nnar.narareronorrormanurrrrrrrnarnire प्रणाम करके प्रार्थनाकी- "हम दोनोंको दूर देशान्तरमें भेज कर, आपने भरत प्रभृति पुत्रों को पृथ्वी बाँट दी और हमें गायके खुर बराबर भी पृथ्वी नहीं दी ! अतः हे विश्वनाथ ! अब प्रसन्न होकर उसे हमें दीजिये आप देवोंके देव हैं। हमारा क्या अपराध देखा, जिससे देत्र तो पर किनारा, आप हमारी बात का जवाब भी नहीं देते?” उनके यह कहने सुनने पर भी प्रभु ने उस समय कुछ भी जवाब न दिया । क्योंकि ममता-रहित पुरुष दुनियाँके झगडोंमें लिप्त नहीं रहते। प्रभु कुछ नहीं बोलते थे, पर प्रभुही अपने आश्रय स्थल है। ऐसा निश्चय कर के वे प्रभु की सेवा करने लगे स्वामीके पासके मार्ग की धूल शान्त करने के लिये वे सदा ही कमलपत्र में जलाशय-तालाबसे जल ला लाकर। छिड़कने लगे। सुगन्ध से मतवाले भौंरों से घिरे हुए फूलों के गुच्छे ला लाकर वे धर्म चक्रवर्ती भगवानके सामने बिछाने लगे। सूरज और चन्द्रमा जिस तरह रात-दिन मेरु पर्वत की सेवा करते हैं; उसी तरह वे सदा प्रभु के पास खड़े हुए तलवार खींच कर उनकी सेवाकरने लगे। और नित्य तीनों समय हाथ जोड कर याचना करने लगे-” हे स्वामी! हमें राज्य दो। आपके सिवा हमारा दूसरा कोई स्वामी नहीं है। नमि विनमि और धरणेन्द्र । एक दिन प्रभुकी चरण-वन्दना करने के लिए, नागकुमारका श्रद्धावान् अधिपति धरणेन्द्र वहाँ आया। उसने सविस्मय देखा
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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