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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र __ जिन्होंने अमृत-समान वाणी रूपी चाँदनी से दिशाओंके मुखों को निर्मल कर दिया है और जिन में हिरन का लाञ्छन है, वह शान्तिनाथ जिनेश्वर तुम्हारे तमोगुण अज्ञान को दूर करें! खुलासा-जिस तरह सुधाकर-चन्द्रमा को सुधामय किरण की चाँदनी ते दिशायें प्रसन्न हो उठती हैं; उसी तरह श्रीशान्तिनाथ स्वामीके सुधा-समान उपदेशों से सुनने वालों के मुख प्रसन्न हो उठते हैं। जिस तरह चन्द्रमाके उदय होने से, उसकी निर्मल चाँदनी छिटकने से दशों दिशाओं का घोर अन्धकार दूर हो जाता है; उसी तरह भगवान् शान्तिनाथ के अमृतमय वचनों के सुनने से श्रोताओं के हृदयकमल खिल उठते हैं, उन के हृदयों का अज्ञान-अन्धकार दूर हो जाता है, उनके शोक-सन्तप्त हृदयों में सुशीतल शान्ति का सञ्चार हो उठता है, वे हिरन के लाञ्छन वाले भगवान् श्राप लोगों के अज्ञान-अन्धकार को उसी तरह नष्ट करें, जिसतरह चन्द्रमा जगत के अन्धकार को नष्ट करता है। श्रीकुंथुनाथो भगवान् सनाथोऽतिशयद्धिभिः । सुरासुरनृनाथानामेकनाथोऽस्तु वःश्रिये ॥१६॥ _ जिस के पास अतिशयों की ऋद्धि या सम्पत्ति है और जो देवताओं, राक्षसों और मनुष्यों के राजाओं का एक स्वामी है, श्रीकुन्थुनाथ भगवान् तुम्हारी सम्पत्ति की रक्षा करें! खुलासा-जो श्रीकुन्थुनाथ भगवान् चौंतीस अतिशयों की सम्पत्ति के स्वामी और देवेन्द्र, दनुजेन्द्र तथा नरेन्द्रोंके भी नाथ हैं, वही भगवान् तुम्हारा कल्याण करें।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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