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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र आरम्भ किया है। क्या अपनी जीविकाके लिये अपनको अपना राज्य फिर ग्रहण करना चाहिये ? अपने राज्य तो भरत ने ग्रहण कर लिये है, इसलिये अब अपन को कहाँ जाना चाहिये ? क्या अपने जीवनके लिये अपने को भरत की शरण में जाना चाहिये ? परन्तु स्वामी को छोड़कर जानेमें अपन को उसका ही भय हैं। हे आर्यो ! हे श्रेष्ठ पुरुषो! अपन लोग प्रभु के विचारों को जा. नने वाले और सदा उनके पास रहने वाले हो, कृपया बताइये कि हम किंकर्त्तव्यमूढ़ लोग क्या करें ? ___ उन्होंने कहा-“स्वयंभूरमण समुद्रका अन्त जो ला सकता है वहीप्रभुके विचारों को जान सकता है। पहले तो प्रभु हमें जो आबा प्रदान करते थे, हम वही करते थे, लेकिन आजकल तोप्रभुने मौन धारण कर रखा है, इसलिये अब वह कुछ भी आज्ञा नही करते। इस लिये जिस तरह तुम कुछ नहीं जानते : उसी तरह हम भी कुछ नहीं जानते । अपन सबकी समान गति है। इसलिये आप लोग कहें वैसा करें। इसके बाद वे सब गङ्गानदीके निकटके वागमें गये और वहाँ स्वच्छन्दता पूर्वक कन्दमूल फलादि खाने लगे तभी से वनवासी कन्द मूल फल फूल खानेवाले तपस्वी पृथ्वी पर फैले। नमि और विनमिका आगमन । उन कच्छ महाकच्छके नमि और बिनमि नामके दो विनीत और सुशील पुत्र थे। वे प्रभुके दीक्षा लेनेसे पहले उसकी आज्ञा
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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