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________________ प्रथम पर्व २५३ मादिनाथ चरित्र के समान चित्र-विचित्र वस्तु या कपड़े देते थे। कोइ मन्दार पुष्पोंकी मालासे स्पर्धा करनेवाले फुलोंकी मालायें देता था ।कोई मेरु पर्वत के शिखर जेसी काञ्चन-राशि भेंट करता था और कोई रोहणा चलके शिखर सदृश रत्न समूह देता था। परप्रभु उनकी दी हुई किसी चीज़ को न लेते थे। भिक्षा न मिलने पर भी अदीनमना प्रभु जङ्गम तीर्थकी तरह विहार करते हुए पृथ्वीतल को पवित्र करते थे। मानो उनका शरीर रस रक्त और मांस प्रभृति सात धातुओं से बना हुआ नहीं था, इस तरह प्रभु भूख प्यास प्रभृति परिषहों को सहन करते थे। नाव जिस तरह हवा का अनुसरण करती है-हवाके पीछे पीछे चलती है, उसी तरह अपनी इच्छासे दीक्षित हुए राजा भी स्वामी का अनुसरण कर विहार करते थे। सहदीक्षितों की चिन्ता । अब क्षुधा आदि से ग्लानि को प्राप्त हुए और तत्वज्ञान हीन वे तपस्वी राजा अपनी बुद्धिके अनुसार विचार करने लगे:-ये स्वामी मानो किंपाकके फल हों, इस तरह मधुर फलोंको भी नहीं खाते और खारी जल हो इस तरह स्वादिष्ट जलको भी नहीं पीते। शरीर शुश्रुषा में अपेक्षा रहित हो जानेसे ये स्नान और विलेपन भी नहीं करते; यानी शरीर की ओर से लापरवा हो जानेसे न स्नान करते हैं और न चन्दन केशर और कस्तूरो आदिका शरीर पर लेप करते हैं। कपड़े, गहने और फूलोंको भी भार समझ कर ग्रहण.
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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