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________________ प्रथम पव २५१ आदिनाथ चरित्र कहते हुए बड़ी प्रसन्नतासे प्रभुके साथ दीक्षा ली। नौकर चाकरों का क्रम ऐसाही होता है। ___ इन्द्रकी की हुई स्तुति। इसके बाद इन्द्र प्रभृति देवता आदि नाथको हाथ जोड़ प्रणाम कर स्तुति करने लगे-“हे प्रभो ! हम आपके यथार्थ गुण कहने में असमर्थ हैं; तथापि हम स्तुति करते हैं ; आपके प्रभावसे हमारी वुद्धिका विकाश होता है। अस और स्थावर जन्तुओंकी हिंसाका परिहार करनेसे अभय दान देनेवाली दानशाला रूप आपको हम नमस्कार करते हैं। समस्त मृषावादका परिहार करने से हितकारी सत्य और प्रिय बचन रुपी सुधारसके समुद्र आपको हम नमस्कार करते हैं। अदत्तादान का न्याय करने से रूके हुए पहले पथिक है, अत: हे भगवान् हम आपको नमस्कार करते हैं। हे प्रभो! कामदेव रूपी अन्धकार के नाश करने वाले और अखण्डित ब्रह्मचर्य रूपी महातेजस्वी सूर्यके समान आपको हम नमस्कार करते हैं ! तिनके की तरह पृथ्वी प्रभृति सब तरह के परिग्रहों को एक दम त्याग देने वाले और निर्लोभिता रूपी आत्मा वाले आप को हम नमस्कार करते हैं आप पञ्च महाव्रतों का भार उठानेमें वृषभके समान हैं और संसार-सागर को पार करनेमें कछुए के समान हैं, आप महा पुरूष हैं, आपको हम नमस्कार करते हैं । हे आदिनाथ ! पांच महाव्रतों की पाँच सहोदराओं जैसी पांच समितियों को धारण करने बाले आपको हम
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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