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________________ प्रथम पर्व २४७ आदिनाथ चरित्र पानीमें मछलीकी तरह भीड़में घुसकर स्वामीके दर्शनकी आकांक्षा से आगे निकल जाने लगे। जगदीशके पीछे-पीछे दौड़ने वाली कितनी ही रमणियोंके हार भागा-दौड़में टूट जाते थे, इससे ऐसा जान पड़ता था, गोया वे प्रभुको लाजाञ्जलि वधाती हों। यह सुनकर कि, प्रभु आते हैं, उनकी दर्शनाभिलाषिणी कितनी ही स्त्रियाँ गोदमें बालक लिये बन्दरों-सहित लताओं सी सुन्दर दीखती थीं। पीन पयोधरों या कुच-कुम्भोंके भारके कारण मन्द गतिसे चलने वाली कितनीही स्त्रियाँ दोनों बाजुओंमें दो पंख हों-इस तरह दोनों तरफ रहनेवाली दोनों सखियोंकी भुजाओं का सहारा लेकर आती थीं। कितनीही स्त्रियाँ प्रभु के दर्शनों के आनन्दकी इच्छासे, गतिभंग करने वाले-चलनेमें रुकावट डालने वाले भारी नितम्बोंकी निन्दा करती थीं, राहमें पड़नेवाले घरोंकी अनेक कुल-कामिनियाँ सुन्दर कसूमी रंगके कपड़े पहने हुए और पूर्णपात्रको धरण किये हुए खड़ी थीं। वे चन्द्र-सहित सन्ध्याके समान सुहावनी लगती थीं। कितनीही चञ्चलनयनी प्रभुको देखने की इच्छासे अपने हस्त-कमलोंसे चँवर-सदृश वस्त्रके पल्लेको फिराती थीं। कितनीही ललनायें नाभिनन्दनके ऊपर धानी फेंकती थीं। उन्हें देखनेसे ऐसा जान पड़ता था, मानो वे अपने पुण्यके वीज पूर्ण रूपसे बो रही हों। कितनी ही स्त्रियाँ मानों भगवान्के घरकी सुवासिनी हों इस तरह, चिरंजीव चिरंनन्द, आयुस्मन् आशीर्वाद देती थीं। कितनीही कमलनयनी नगर नारियाँ अपने नेत्रों को निश्चल और गति को तेज़ करके प्रभु के पीछे-पीछे चलती और उन्हें देखती थीं।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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