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________________ प्रथम पर्व २३६ आदिनाथ-चरित्र हाथी पर बैठा हुआ महावत जिस तरह सबको तुच्छ या भुनगा के समान समझता है; उसी तरह मान या अभिमान पर बैठे हुए पु. रूष मर्यादा का उल्लङ्घन करके किसी को भी माल नहीं समझते, जगत् को तुच्छ या हकीर समझते हैं । जो मानकी सवारी करते हैं, जो भभिमानी या अहंकारी होते हैं, वे मर्यादा भङ्ग करके, लोक, निन्दा और ईश्वर से न डर कर, दुनिया को हिकारत की नज़र से देखते हैं, सबको अपने मुकावलेमें तुच्छ या नाचीज़ समझते हैं। दुराशय प्राणी या दुर्जन लोग कौंचकी कलीके समान जलन या भयङ्कर वेदना करने वाली माया को नहीं त्यागते। तुषोदक से जिस तरह दूध बिगड़ जाता या फट जाता है, काजलसे जिस तरह साफ सफेद कपड़ा काला या मैला हो जाता है; उसी तरह लोभ से प्राणी का निर्मल गुणग्राम दूषित हो जाता या बह स्वयं उसे दूषित कर लेता है। जब तक इस संसार रुपी कारागार या जेलखाने में जब तक ये चार कषाय पहरेदार या सन्त्री की तरह जागते रहते हैं, तब तक पुरुषों की मोक्ष-मुक्ति या छुटकारा हो नहीं सकता। दूसरे शब्दों में इस तरह समझिये, जिस तरह जेलमें जब तक चौकीदार जागते रहते हैं, कैदी को जेलसे मुक्ति या रिहाई नहीं मिल सकती, वह कैदसे छूट नहीं सकता; जेलसे मुक्ति पा नहीं सकता ; उसी तरह इस संसार रूपी जेलमें जो प्राणी कैद हैं, जिन्होंने इस संसारमें जन्म लिया है, जो इस जगत् के बन्धनमें फंसे हुए हैं, संसारी रूपीजेलसे मुक्ति पा नहीं सकते, जब तक कि लोभ मोह आदिक कषाय जाग रहे हैं; मत
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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