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________________ आदिनाथ चरित्र २३४ जमान हुए । उस समय फूल और माकन्दके मकरन्दसे उन्मत्त होकर भौंरे गूजते थे ; इस लिये ऐसा मालूम होता था, मानो वसन्त लक्ष्मी प्रभुका स्वागत कर रही हो । पंचम स्वरको उच्चारनेवाली कोकिलाओंने मानो पूर्व रंगका आरम्भ किया होऐसा समझकर, मलयाचलका पवन नट होकर लताओंका नाच दिखाता था । मृगनयनी कामिनियाँ अपने कामुक पुरुषोंकी तरह अशोक और बबूल आदि वृक्षोंको आलिङ्गन, चरणपात और मुखका आसव प्रदान करती थीं। तिलक वृक्ष अपनी प्रबल सुगन्ध से मधुकरोंको प्रमुदित करके, युवा पुरुषके भालस्थलकी तरह वनस्थलको सुशोभित करता था। जिस तरह पतली कमर वाली ललना अपने उन्नत और पुष्ट पयोधरोंके भारसे झुक जाती है; उसी तरह लवली वृक्षकी लता अपने फूलोंके गुच्छोंके भारसे झुक गई थी । चतुर कामी जिस तरह मन्द मन्द आलिङ्गन करता है ; उसी तरह मलय पवन आमकी लताको मन्द मन्द आलिङ्गन करने लगा था । लकड़ीवाले पुरुषकी तरह, कामदेव जामुन, कदम, आम चम्पा और अशोक रूपी लकड़ियों से प्रवासी लोगों को धम काने में समर्थ होने लगा था । नये पाडल पुष्पके सम्पर्क से सुगन्धित हुआ मलयाचलका पवन, उसी तरह सुगन्धित जलसे सबको हर्षि, त करता था। मकरन्द रससे भरा हुआ महुएका पेड़ मधुपात्र के समान फैलते हुए भौरोंके कोलाहल से आकुल हो रहा था । गौली और कमान चलानेके अभ्यासके लिये कामदेवने कदमके बहाने से मानो गोलियाँ तैयार की हों, ऐसा जान पड़ता था, जिसे प्रथम पर्व
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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