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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व तैयारकी हुई औषधियों या धान्यको उसमें डालकर पकाओ और खाओ।" उन मूोंने वैसा ही किया, तब आगने सारी औषधियां जला डालीं। उन लोगोंने शीघ्र ही स्वामी के पास जाकर सारा हाल कह सुनाया और कहा कि स्वामिन् ! वह आग तो भुखमरे की तरह, उसमें डाली हुई सब औषधियोंको अकेली ही खा जाती है-हमें कुछ भी वापस नहीं देती।" उस समय प्रभु हाथी पर बैठे हुए थे, इस लिये वहीं उन लोगोंसे एक गीली मिट्टीका गोला मँगवाया और उसे हाथीके गण्डस्थल पर रखकर, हाथ से फेला कर, उसी आकार का एक पात्र या बर्तन प्रभुने बनाया। इस तरह शिल्पकलाओं में पहली शिल्पकला प्रभुने कुम्हारकी प्रकट की। इसके बाद प्रभुने कहा- "इसी तरह तुम और पात्र भी बनालो। पात्रको आगपर रख कर, उसमें अनाज को रखो और पकाकर खाओ।" उन्होंने ठीक प्रभुकी आज्ञानुसार काम किया। उस दिन से पहले शिल्पी या कारीगर कुम्हार हुए। लोगोंके घर बनाने के लिए प्रभुने सुनार या बढ़ई तैयार किया। महा पुरुषों की बनावट विश्वके सुख के लिये ही होती है। घर प्रभृति चीतने या चित्र बनाने के लिये और लोगोंकी विचित्र क्रीड़ा के लिये प्रभुने चित्रकार तैयार किये। मनुष्यों के वास्ते कपड़े बुनने के लिये प्रभुने जुलाहों की सृष्टि की ; क्योंकि उस समय कल्पवृक्षों की जगह प्रभुही एक कल्पवृक्ष थे। लोग बाल और नाखून बढ़ने के कारण दुखी रहते थे, इसलिये जगदीशने नाई बनाये। कुम्हार, बढ़ई, चित्रकार, जुलाहे और नाई-इन पाँच शिल्पियों में से एक
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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