SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व २०३ आदिनाथ-चरित्र वत्स-सदृश श्रीवत्ससे लांछित था। पवनरहित स्थानमें रखी हुई कम्प-रहित दीपशिखाके समान छिद्ररहित और सरल प्रभुके पैरोंकी उङ्गलियाँ चरण रूपी कमलके पत्तों-जैसी जान पड़ती थीं और वे अर्थात् प्रभुके पैरोंकी अँगुलियाँ निर्वास स्थानमें रक्खे हुए दीपककी स्थिर लो के समन बिना छेदों वाली और सीधी थीं और चरण रूपी कमलके पत्तों-जैसी मालूम होती थीं। उन उगलियोंके नीचे नन्दावर्त्तके चिह्न शोभते थे। उनके प्रतिविम्ब ज़मीन पर पड़नेसे धर्म प्रतिष्ठाके हेतु रूप होते थे, अर्थात् चैत्य-प्रतिष्ठामें जिस तरह नन्दावर्त्त का पूजन होता है, उसी तरह प्रभुकी आँगुलियोंके नीचेके नन्दावर्त्तके चिह्नोंके प्रतिविम्ब या निशान ज़मीन पर पड़ नेसे धर्म-प्रतिष्ठाके हेतुरूप होते थे। जगत्पति के हरेक अंगुलीके पोरुवोंमें अधोसाधियों सहित जौके चिह्न थे। ऐसा मालूम होता था, मानो वे प्रभुके साथ जगत्की लक्ष्मीका विवाह करनेको वहाँ आथे हों। पृथु और गोलाकार एड़ी चरण-कमलके कन्द जैसी सुशोभित थी। नाखून मानों अंगूठे और अंगुली रूपी सर्पके फण पर मणि हों इस तरह शोभते थे और चरणोंके दोनों गुल्फ या टखने सोनेके कमल की कली की कणिकाके गोलककी शोभाको विस्तारते थे। प्रभुके दोनों पाँवोंके तलवोंके ऊपरके भाग कछुएकी पीठकी तरह अनुक्रम से ऊँचेथे , जिनमें नसें नहीं दीखती थीं और जो रोमरहित तथा चिकनी कान्ति वाले थे। गोरी-गोरी पिंडलियाँ रुधिरमें अस्थिमान होने से पुष्ट गोल और मृगकी पिंडलियोंकी शोभाका भी
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy